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Sushil Modi बोले- राजेंद्र बाबू और इंदिरा गाँधी भी कर चुके हैं मंदिरों का उद्घाटन, कांग्रेस ने भुला दिया

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  • राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तिथि का चुनाव से कोई संबंध नहीं

  • गर्भगृह बनने के बाद मूर्ति स्थापना शास्त्र सम्मत

  • प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति और अनुष्ठान पर अनर्गल प्रश्न उठाना दुखद

अयोध्या / पटना। श्री राम जन्मभूमि मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सम्मिलित होने अयोध्या पहुँचे राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी (Sushil Modi) ने बिहारवासियों से कल 22 जनवरी की शाम घरों-मंदिरों में दीप जलाने का निवेदन किया और कहा कि एक ऐतिहासिक सुअवसर पर राम-विरोधियों का तरह-तरह के अनर्गल प्रश्न उठाना दुखद है।

Sushil Modi ने कहा कि जो लोग प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति पर आपत्ति कर रहे हैं, उन्हें क्या पता नहीं कि प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन किया था। उस समय प्रधानमंत्री नेहरू राजेंद्र बाबू के निर्णय के विरुद्ध थे। आज नेहरू की पार्टी प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्योता ठुकरा रही है।

उन्होंने कहा कि उद्घाटन के समय सोमनाथ मंदिर का भी निर्माण पूरा नहीं हुआ था। शास्रों के अनुसार किसी मंदिर का गर्भगृह तैयार हो जाने के बाद मूर्ति की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा करना धर्म-सम्मत है। शेष निर्माण वर्षों तक होते रह सकते हैं।

Sushil Modi ने कहा कि 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने हरिद्वार के भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया था, लेकिन आज कांग्रेस को अपना यह इतिहास याद करना असुविधाजनक लग रहा है।

उन्होंने कहा कि जो लोग राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के समय को चुनाव से जोड़ कर देखते हैं, वे बतायें कि क्या 1952 में देश का पहला आम चुनाव सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन होने के मात्र चार महीने पहले नहीं हुआ था?

उन्होंने कहा कि राम मंदिर के सारे अनुष्ठानों की तिथि साधु-संत, ज्योतिषाचार्य और श्रीराम जन्मभूमि मंदिर तीर्थ क्षेत्र का निर्णायक मंडल निर्धारित करते हैं , जबकि चुनाव की तारीख चुनाव आयोग तय करता हैं।इसमें सरकार और पार्टी की कोई भूमिका नहीं होती।

श्री मोदी ने कहा कि 1989 में राम मंदिर के शिलान्यास समारोह में गृह मंत्री बूटा सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलापति त्रिपाठी शामिल हुए थे। उस वर्ष राजीव गांधी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत अयोध्या से की थी।

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