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SBMB_SHASHI BHUSHAN_SATENDRA: एक बिहारी, जो अंग्रेजों को इंग्लिश सिखा रहा

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  • लैंग्वेज़ की दुनिया में गदर काट रही शशि भूषण-सत्येंद्र सिंह की जोड़ी

  • कमज़ोरी को बनाई ताक़त, अब विदेशियों को भी सिखा रहे अंग्रेजी

  • एसबीएमबी- स्कूल ऑफ लैंग्वेज के नाम से चला रहे अपना संस्थान

  • कहा- इंग्लिश सीखने का कोई शार्टकट नहीं, सीखने में लगता है समय

  • 15 दिन में अंग्रेजी सिखाने के नाम पर मूर्ख बना रहे बहुतेरे संस्थान

SBMB_SHASHI BHUSHAN_SATENDRA: जनरेशन आगे बढ़े, भाषा की दुश्वारियां उनके आड़े ना आए। हमारा मक़सद इंस्टीट्यूट से माल कमाना नहीं है, बल्कि हम लोगों को स्किल सीखा रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग अंग्रेजी सीखें और आगे बढ़ें। ये बातें कही लैंग्लेज़ की दुनिया में धमाल मचा रही जोड़ी के शशि भूषण ने।

हिंदी फिल्म का एक गाना है…मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए…। इसको चरितार्थ किया है बिहार के सुदूर इलाके के रहने वाले शशि भूषण और उनके साथी सत्येंद्र कुमार सिंह ने।

शशि भूषण ने और उनके साथी सत्येंद्र कुमार सिंह अब दिल्ली में लैंग्वेज की ट्रेनिंग देते हैं। एसबीएमबी – स्कूल ऑफ लैंग्वेज के नाम से इन्होंने अपना संस्थान खोल रखा है। ये संस्थान दिल्ली के लक्ष्मी नगर में मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर दो के पास में है।

अब बात शशि भूषण की करते हैं। शशि ने प्लस टू की पढ़ाई तक अपने गांव में ही रहे। अपनी पारिवारिक दुकान पर हाथ बंटाने के साथ ही वो पढ़ाई करते थे। प्लस टू के बाद चार्टर्ड एकाउटेंट यानी सीए कोर्स करने के लिए दिल्ली आ गए। दिल्ली में देखा तो वहां की दुनिया अलग थी। ठेठ देहाती परिवेश से आए शशि भूषण को इंग्लिश में काफी परेशानी होती थी।

थोड़ा समय गुजरा। इंग्लिश सीखने के लिए शशि भूषण ने कई स्थानों पर कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। ऐसे में उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। और ब्रिटिश सरकार के दूतावास की ओर से चलाए जा रहे ब्रिटिश काउंसिल में अंग्रेजी सीखने के लिए दाखिला ले लिया। ब्रिटिश काउंसिल में उन्होंने जनरल इंग्लिश, स्पोकन इंग्लिश और बिज़नेस कम्युनिकेशन स्किल का कोर्स किया।

शशि जब ये कोर्स कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात बिहार के छपरा के रहने वाले सत्येंद्र कुमार सिंह से हुई। सत्येंद्र की स्थिति भी कुछ शशि जैसी ही थी, जो दिल्ली एमबीए करने के लिए आए थे। कैट की तैयारी कर रहे थे।

दोनों की दोस्ती बढ़ी और दोनों रूम पार्टनर बन गए। इस बीच सत्येंद्र का कैट में सेलेक्शन हो गया, लेकिन शशि के मन में कुछ दूसरा चल रहा था। उन्हें लगता था कि बिहार जैसी जगह से आने पर जो परेशानी उन्हें उठानी पड़ी, वैसा अन्य छात्रों को नहीं उठानी पड़े। इसलिए उन्होंने सत्येंद्र से बात की और अपना इंस्टीट्यूट शुरू करने की बात कही, जिस पर सत्येंद्र भी तैयार हो गये। सत्येंद्र ने कैट की परीक्षा पास कर ली, लेकिन दाखिला नहीं लिया।

दोनों ने मिलकर एसबीएमबी स्कूल ऑफ लैंग्वेज की नींव डाली। इस संस्थान के फाउंडर शशि भूषण हैं। वहीं सीइओ की जिम्मेदारी सत्येंद्र कुमार सिंह निभा रहे हैं। दोनों उन छात्र- छात्राओं और प्रोफेशनल्स को गाइड कर रहे हैं, जिन्हें लैंग्वेज में परेशानी होती है।

मिलनसार, शशि और सत्येंद्र की बॉंडिंग बिल्कुल अलग है। ये आपसे मिलेंगे, तो आप इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे। शशि ने ठेठ बिहारी होने के बाद भी अपनी कमज़ोरी को ऐसी शक्ति के रूप में बदला कि अब वो अपने देश ही नहीं विदेशियों को भी इंग्लिश और लैंग्वेज में ट्रेंड कर रहे हैं।

शशि बताते हैं कि ये सफ़र बहुत आसान नहीं था, लेकिन जब मन में ठान लिया कि करना है, तो करना है। इसके बाद रास्ता निकलता चला गया और इंस्टीट्यूट अपना रूप ले चुका है। छात्र-छात्राएं और प्रोफेशनल्स आ रहे हैं। हमारी टीम उन्हें ट्रेनिंग देती है। विभिन्न संस्थानों में काम करने वाले लोगों को भी हम स्किल की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

SBMB SHASHI BHUSHAN SATYENDRA SINGH

कम समय में ही शशि और सत्येंद्र दिल्ली के सर्किल में इग्लिंश स्पोकन और लैंग्वेज के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम बन गए हैं। शशि की उपलब्धि को देखते हुये हाल में जोश टॉक में बुलाया गया, जहां उन्होंने अपनी मेकिंग की कहानी सुनाई, तो सब लोग सुनते ही रह गए। उन्होंने बताया कि कैसे वो गांव में अपने पिता और परिजनों को सहयोग करते थे। उनके व्यापार में हाथ बंटाते थे। इसके साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

शशि अपनी सफलता के पीछे अपने माता-पिता को श्रेय देते हैं, जिन्होंने इन पर विश्वास किया था। दिल्ली में सीए बनने के लिए भेजा था। हालाँकि सीए बनने का सपना छोड़कर इंग्लिश लैंग्वेज पढ़ाना शुरू करने पर भी घर वालों ने पूरा सहयोग किया।

बता दें कि ब्रिटिश काउंसिल की पढ़ाई महंगी होती है। उसके बावज़ूद उनके परिजनों ने कदम पीछे नहीं हटाया और 5 साल तक ब्रिटिश काउंसिल में पढ़ने और सीखने का मौका दिया। जब शशि ब्रिटिश काउंसिल से निकले और दोस्तों के बीच इंग्लिश बोलते, तो वो जिस लहज़े में अपनी बात रखते, इंग्लिश के बड़े जानकार भी वैसा नहीं कर पाते थे।

अपने ज्ञान की बदौलत ही शशि भूषण अब अपने साथ आए युवाओं को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनकी स्किल को बढ़ा रहे हैं। शशि अपनी सीख को इस मुकाम पर ले जाना चाहते हैं, जहां इग्लिंश गांव से आनेवाले बच्चों के लिए परेशानी का सबब न बन सके।

इसके साथ ही शशि एक और भ्रम तोड़ते हैं। वो कहते हैं कि इंग्लिश सीखने का कोई शार्टकट नहीं है। कोई कहता है कि हम 15 दिन में इंग्लिश बोलना और लिखना सिखा देंगे, तो समझ लीजिए कि वो मूर्ख बना रहा है। वो आगे कहते हैं कि इंग्लिश सीखना एक सतत प्रक्रिया है। अगर आप सीखना शुरू करते हैं, तो आपको समय लगता है। पूरी प्रक्रिया में एक साल तक का समय लग जाता है, तब जाकर लोग अंग्रेजी को ठीक से समझ और बोल पाते हैं। ऐसे में अगर किसी को अंग्रेजी सीखनी और बोलनी है, तो उसे शार्टकट के चक्कर में नहीं फंसना चाहिये, क्योंकि वो आपको सिखा नहीं पाएंगे, जिससे आपकी परेशानी और बढ़ेगी।

शशि ने अपने संस्थान में आने वाले लोगों का पहले टेस्ट लेते हैं, देखते हैं वो अंग्रेजी में कहां तक सक्षम है। इसके बाद ही वो उसे आगे की अंग्रेजी लर्निंग के बारे में बताते हैं। शशि कहते हैं हर व्यक्ति के अंग्रेजी नॉलेज का स्तर अलग होता है। इसलिए टेस्ट बहुत अहम होता है। इससे हमें सही स्थिति का पता चलता है। उसी के मुताबिक हम सीखने वाले के लिए कोर्स डिज़ाइन कर पाते हैं।

इसके साथ ही शशि एक और बात कहते हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य इंस्टीट्यूट से पैसा कमाना नहीं है, बल्कि लोगों को स्किल सिखाना है। ऐसे में ज्यादा लोग अंग्रेजी और अन्य भाषाएं सीखें और आगे बढ़ें। यही उनका और उनके संस्थान का मक़सद बन गया है।

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