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Pawan Singh BJP: पवन सिंह को भाजपा नेता ही लड़ाया?

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  • कुशवाहा वोटों की लड़ाई में BJP ने गंवाईं चार सीटें

  • खुद को कुशवाहा किंग साबित करना चाहता था नेता

  • पवन सिंह को जबरन उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ उतारा

  • अब भाजपा नेताओं के बीच चर्चा गर्म है, क्या होगा?

  • नेता जी खुद को पार्टी से बड़ा साबित करना चाहते थे?

  • शाहाबाद इलाके से साफ हो गया एनडीए, 2019 में जीता था

Pawan Singh BJP: लोकसभा चुनाव के नतीजे आ गये हैं. भाजपा का 370 सीटों का सपना चकनाचूर हो चुका है, लेकिन केंद्र में सरकार भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की बन रही है. अभी तक समझौतों के आदी नहीं रहे पार्टी के नेता अब समझौता करने पर अमादा है और खुद को ऐसा दिखा रहे हैं, जैसे वो गठबंधन के लिए बने हैं. लेकिन चंद दिन पहले स्थिति इससे अलग थी. नेता मोदी जी के नाम पर खुद को मुख्तियार समझ रहे थे. बिहार में नौ सीटों एनडीए ने गवां दीं, जिसमें पांच सीटों भाजपा की शामिल हैं. ये सीटें पार्टी कैसी हारी इसको लेकर अब चर्चा शुरू हुई है, तो सबसे ज्यादा चर्चा काराकाट सीट को लेकर हो रही हैं, क्योंकि वहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा लड़ रहे थे.

उपेंद्र कुशवाहा की सीट की चर्चा इसलिए भी हो रही हैं, क्योंकि वहां से भोजपुरी के पावर स्टार पवन सिंह चुनाव मैदान में निर्दलीय आ गये थे. पवन सिंह सालों से भाजपा नेता थे. चुनाव के लिए टिकटों का ऐलान हुआ, तो उन्हें पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से टिकट मिला, जिसका जश्न भी पवन सिंह ने मनाया, लेकिन टिकट मिलने के कुछ समय बाद ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया.

ऐसे में सवाल उठा कि आखिर क्या हुआ कि पार्टी से टिकट मिला, तो जश्न मनाने वाले पवन सिंह ने चंद घंटे बाद ही टिकट वापस करने का ऐलान कर दिया. बताते हैं कि इस रणनीति के पीछे एक भाजपा नेता ही शामिल हैं, जो कुशवाहा समुदाय से आते हैं और खुद को भाजपा पार्टी का सर्वेसर्वा समझ रहे थे. उन्हें पता था कि उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट से टिकट मिल रहा है, तो उन्होंने पवन सिंह को काराकाट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया, ताकि उपेंद्र कुशवाहा को घेरा जा सके. वो समझ रहे थे कि उनके इस कदम से कुशवाहा वोट उनके साथ आएगा, लेकिन दांव उल्टा पड़ा, इस पर हम चर्चा करेंगे, लेकिन पहले बात पवन सिंह की कर लेते हैं, जिन्होंने अपनी मां की बात का हवाला देकर काराकाट से चुनाव लड़ा.

पवन सिंह को भोजपुरी सिनेमा का पावर स्टार कहा जाता है. उनका स्टाऱडम चला था, लेकिन उतना नहीं कि उन्हें जीत दिला सके, वो कुशवाहा से आगे आए, लेकिन कुशवाहा वोटों का ऐसा प्रकोप हुआ कि भाजपा और जदयू शाहाबाद से साफ हो गयी. एक भी सीट एनडीए को इस इलाके से नहीं मिली, जबकि 2019 में सभी सीटों पर पार्टी का कब्जा था.
जब चुनाव परिणाम आए, तो भाजपा में अंदरखाने इसको लेकर चर्चा भी शुरू हो गई. पार्टी नेताओं के बीच चर्चा गर्म है कि पूरा मामला पार्टी आलाकमान के पास पहुंचा है. कोई फैसला हो सकता है, लेकिन किस तरह से शहाबाद रीजन से भाजपा और एनडीए का सफाया हो चुका है. इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा कह चुके हैं कि सबको मालूम है कि किसने कहने पर पवन सिंह चुनाव लड़े.

दरअसल, पवन सिंह भाजपा नेता थे. वो राज्य कार्यकारिणी के सदस्य थे. चुनाव में निर्दलीय खड़े हो गये. तब उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग होने लगी, लेकिन उन पर शुरुआती दौर में कोई कार्रवाई नहीं हुई. गठबंधन के अंदर इसको लेकर बात हुई. बताया जाता है कि जब भाजपा की प्रदेश कमेटी की ओर से कदम नहीं उठाया गया, तो कुशवाहा मतदाताओं में इसको लेकर संदेश गया कि पवन सिंह को भाजपा का समर्थन प्राप्त है. जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा, तो पवन सिंह को भाजपा से बाहर करने की औपचारिकता पूरी की गयी, लेकिन तब तक पटकथा लिटी जा चुकी थी. पावर स्टार के रूप में पवन सिंह काराकाट में प्रचार कर रहे थे. उनके समर्थन में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के स्टार पहुंच रहे थे.

उधर, कुशवाहा वोटरों में ये मैसेज फैल गया कि पूरा मामला भाजपा नेताओं ने प्लांट किया है, ताकि उपेंद्र कुशवाहा को हराया जा सके. इससे कुशवाहा समाज का वोटर एनडीए से नाराज हो गया और बताया जाता है कि उसने एनडीए के खिलाफ वोटिंग करने का फैसला लिया. इधर, विपक्ष ने कुशवाहा कार्ड को कुंद करने के लिए पहले से ही कई कुशवाहा उम्मीदवारों को मैदान में उतार रखा था. रही कसर उससे पूरी हो गयी.

भाजपा के जिस नेता ने उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ पूरा मामला तैयार किया था. पवन सिंह को लड़ाया था. वो दांव उस पर ही अब भारी पड़ रहा है. उसका बड़बोला पन खत्म होता जा रहा है. वो अब नीतीश कुमार को लेकर भी अपना बयान बदल रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी के अंदर उसका कद आनेवाले दिनों में छोटा होगा, क्योंकि पार्टी की ओर से जो सोच कर जिम्मेदारी दी गयी थी. वो पूरा नहीं हुआ, बल्कि कई सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा कई कद्दावर नेता संसद नहीं पहुंच सके.

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