-
ब्रह्मा के मुख से हुआ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का उच्चारण
-
नर्मदा नदी में स्थित है शिव को समर्पित ओंकारेश्वर मंदिर
-
ओंकारेश्वर में है शिव का ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर और ममलेश्वर
-
ओंकारेश्वर मंदिर 8वीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं ने बनवाया
Omkareshwar Jyotirlinga Mandir: मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले में नर्मदा नदी के बीच में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ओंकारेश्वर मंदिर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं। इन दोनों शिवलिंगों को एक ही ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग दुनियाभर में शिव भक्तों की आस्था के केन्द्र हैं। भगवान शिव के इन 12 ज्योतिर्लिंगों में दो ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में हैं। इनमें से एक ज्योतिर्लिंग उज्जैन में है। जहाँ साल भर शिवभक्तों का ताँता लगा रहता है। वहीं दूसरा ज्योतिर्लिंग खंडवा में नर्मदा नदी के तट पर है। ये मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां दुनियाभर से लोग भगवान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
Omkareshwar Jyotirlinga: यह मंदिर हिन्दू पवित्र चिह्न ओम के आकार में बना हुआ है। यह मंदिर 8वीं शताब्दी ईस्वी में चालुक्य वंश द्वारा बनाया गया था। नर्मदा और कावेरी नदी का संगम ओंकारेश्वर में होता है। ओंकारेश्वर में श्रद्धालु कामनापूर्ति के लिए जल लेकर भगवान ओंकारेश्वर एवं मान्धाता पर्वत की परिक्रमा करते है, यह करीब 7 किलोमीटर की परिक्रमा है।
यहां सावन में दूर-दूर से भक्त आते हैं। ओंकारेश्वर में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दो रूपों में विराजमान है। मंदिर का निर्माण उत्तर भारतीय वास्तुकला में किया गया है।
सुबह की आरती के समय 7 से 8 बजे तक, दोपहर में मध्याह्न भोज के समय 12.20 से 1.20 बजे तक और संध्या श्रृंगार 4 से 5 बजे तक के समय मंदिर के अंदर प्रवेश वर्जित रहता है।
Omkareshwar Jyotirlinga: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। इन्हें भक्तों की आस्था का केन्द्र भी माना जाता है। भगवान शिव के इन 12 ज्योतिर्लिंगों में दो ज्योतिर्लिंग हैं जो मध्य प्रदेश में हैं और इनमें से एक ज्योतिर्लिंग उज्जैन में है, जो कि काफी प्रसिद्ध माना जाता है। जहाँ साल भर शिवभक्तों का ताँता लगा रहता है। वहीं दूसरा ज्योतिर्लिंग खंडवा में नर्मदा नदी के किनारे है। ये विश्व प्रसिद्ध ओंकारेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां दुनियाभर के लोग भगवान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
अब जानते हैं इस मंदिर से जुड़े तथ्य और मान्यता के बारे में।
ब्रह्मा के मुख से हुआ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का उच्चारण: ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा में नर्मदा नदी के मध्य द्वीप पर स्थित है। वहीं दक्षिण तट पर ममलेश्वर मंदिर मौजूद है। ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग भी है। ओंकारेश्वर मंदिर की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में चौथा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग है। ऐसा माना जाता है कि इस शब्द की उच्चारण सबसे पहले ब्रह्मा के मुख से हुआ था।
मंदिर की क्या है मान्यता? खास बात ये है कि मंदिर का निर्माण उत्तर भारतीय वास्तुकला में किया गया है। 5 मंजिला इस मंदिर में सबसे नीचे श्री ओंकारेश्वर देव फिर श्री महाकालेश्वर, श्री सिद्धनाथ, श्री गुप्तेश्वर और अंत में ध्वजाधारी देवता विराजमान हैं।
Omkareshwar Jyotirlinga Khandwa: ओम के आकार में दिखता है मंदिर का द्वप: ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के बीच मन्धाता और शिवपुरी द्वीप पर स्थित है। खास बात ये है कि ये द्वीप पवित्र चिह्न ओम के आकार में दिखाई पड़ता है। यही करण है कि इसे ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। माना ये भी जाता है कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग एक प्रकृतिक शिवलिंग है, इसे ओकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। माना ये भी जाता है कि ओंकारेश्वर में स्थापित लिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है, इसे किसी मनुष्य द्वारा तराशा या गढ़ा नहीं गया है।
Omkareshwar Jyotirlinga: ओंकारेश्वर मंदिर से जुड़ी तीन कहानियां प्रचलित हैं। जिसमें से एक कहानी के अनुसार एक बार नारद जी विंध्याचल पर्वत पहुंचे। वहां पहुंचते ही पर्वत राज कहे जाने वाले विंध्याचल ने नारद जी का आदर सत्कार किया। इसके बाद विंध्याचल पर्वतराज ने कहा कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पर सब कुछ है। नारद जी पर्वतराज की बातों को सुनते रहे और चुप खड़े रहे। जब पर्वतराज की बात समाप्त हुई तो नारद जी उनसे बोले कि मुझे ज्ञात है कि सर्वगुण सम्पन्न हो, परन्तु फिर तुम समेरु पर्वत की भांति ऊँचे नहीं हो। सुमेरु पर्वत को देखो जिसका भाग देवलोकों तक पहुंचता हैं परन्तु तुम वहां तक कभी नहीं पहुच सकते हो।
Omkareshwar Jyotirlinga Temple: नारद जी इन बातों को सुन विंध्याचल पर्वतराज खुद को ऊँचा साबित करने के लिए सोच-विचार करने लगे। नारद जी की बातें उन्हे चुभ रही थीं और वे बहुत परेशान हो गये, क्योंकि यहाँ पर उनके अहंकार की हार हुई। अपने आपको सबसे ऊँचा बनाने की कामना के चलते उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का मन बनाया। उन्होंने लगभग 6 महीने तक भगवान शिव की कठोर तपस्या कर प्रसन्न किया। अंततः भगवान शिव विंध्याचल से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा।
इस पर विंध्याचल पर्वत ने कहा कि हे प्रभु मुझे बुद्धि प्रदान करें और मैं जिस भी कार्य को आरंभ करूं वह सिद्ध हो। इस प्रकार विंध्याचल पर्वत ने वरदान प्राप्त किया। भगवान शिव को देख आसपास के ऋषि मुनि वहां पर आ गये और उन्होंने भगवान शिव से यहाँ वास करने की प्रार्थना की। इस प्रकार भगवान शिव ने सभी की बात मानी, वहां पर स्थापित लिंग दो लिंगम में विभाजित हो गया। इसमें से विंध्याचल द्वारा स्थापित पार्थिव लिंग का नाम ममलेश्वर लिंग पड़ा, जबकि जहाँ भगवान शिव का वास माना जाता है उसे ओंकारेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाने लगा।
Omkareshwar Jyotirlinga Temple: ओंकारेश्वर लिंग से जुड़ी दूसरी कहानी कहती है कि राजा मान्धाता ने यहाँ पर्वत भगवान शिव का ध्यान करते घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए थे और राजा ने उन्हें यहाँ सदैव के लिए निवास करने के लिए कहा था। तभी से यहाँ पर ओंकारेश्वर नामक शिवलिंग स्थापित है जिसकी आज तक अत्यधिक मन्यता है।
Omkareshwar Jyotirlinga: तीसरी कहानी के संबध में कहा जाता है कि जब देवतओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ और सभी देवता दैत्यों से पराजित हो गये तब उन्होने अपनी हताशा में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। देवताओं की सच्ची श्रद्धा भक्ति देख भगवान शिव ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप हुए और उन्होंने सभी दैत्यों को पराजित किया।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचा जाए? यदि आप हवाई मार्ग से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंचना चाहते हैं तो आपको ओंकारेश्वर से 77 किलोमीटर दूर अवस्थी इंदौर एयरपोर्ट तक जाना होगा। इसके बाद बस या टैक्सी के माध्यम से यहाँ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से जाने के लिए भी इनके निकटतम कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। रेलवे के द्वारा जाने का लिए आपको इंदौर या खंडवा रेलवे स्टेशन आने के बाद कोई बस या टैक्सी करनी होगी।