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साधु टीएल वासवानी जयंती 25 नवंबर पर ‘मीट फ्री डे’ घोषित
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महावीर, बुद्ध, गांधी और वासवानी जयंती, व शिवरात्रि पर बैन
Meat-Free Day: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने वर्ष में पांच दिवस मांस रहित घोषित कर दिए हैं। इनमें साधु टीएल वासवानी के जन्मदिन पर 25 नवंबर को भी प्रदेश में पशु वधशालाओं और मांस की दुकानों को बंद रखे जाने का फैसला लिया गया है।
योगी सरकार ने वर्ष में पांच दिवस मांस रहित (मीट फ्री डे) घोषित कर दिए। इनमें साधु टीएल वासवानी के जन्मदिन पर 25 नवंबर को भी प्रदेश में पशु वधशालाओं और मांस की दुकानों को बंद रखे जाने का फैसला किया गया है।
इस संबंध में जारी शासनादेश में कहा गया है कि महापुरुषों और अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले युग पुरुषों के जन्म दिवसों और कुछ प्रमुख धार्मिक पर्वों को अभय व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके तहत महावीर जयंती, बुद्ध जंयती, गांधी जयंती, साधु टीएल वासवानी और शिवरात्रि के महापर्व पर प्रदेश की सभी स्थानीय निकायों में स्थित पशु वधशालाओं और गोश्त की दुकानों को बंद रखे जाने के निर्देश समय-समय पर जारी किए गए हैं।
अब साधु टीएल वासवानी के जन्मदिन 25 नवंबर 2023 को भी मांस रहित दिवस घोषित करते हुए प्रदेश की सभी नगर निकायों में स्थित पशु वधशालाओं और गोश्त की दुकानों को बंध रखे जाने का निर्णय लिया गया है।
उधर, उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी के नानक चंद लखमानी, सिंधु सभा के अध्यक्ष अशोक मोतियानी, महामंत्री श्याम किर्षणानी, मेला कमेटी के अध्यक्ष अशोक चंदवानी, महामंत्री रतन मेघानी, सुरेश छबलानी, तरुण संगवानी सहित तमाम लोगों ने इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार व्यक्त किया है।
योगी सरकार ने 25 नवंबर को ‘नो नॉन-वेज डे’ मनाने का फैसला साधु टीएल वासवानी की जयंती को देखकर लिया। इससे पहले ‘साधु वासवानी मिशन’ द्वारा हर 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय माँस रहित दिवस मनाया जाता था।
साधु टीएल वासवानी का पूरा नाम साधु थानवरदास लीलाराम वासवानी था। वह एक शिक्षाविद् थे। उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध में हुआ था। उन्होंने दसवीं पास करके 1899 में बम्बई विश्वविद्यालय से बीए किया और 1902 में वहीं से एमए करके जीवन प्रभु सेवा को समर्पित कर दिया।
इसके बाद उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में मीरा आंदोलन की शुरुआत की। साथ ही पाकिस्तान के हैदराबाद में सेंट मीरा स्कूल की स्थापना की। मगर, विभाजन के बाद वह पुणे चले आए। बाद में उनके जीवन और शिक्षण को समर्पित एक संग्रहालय, दर्शन संग्रहालय को दिया।
हालाँकि उनकी माँ की इच्छा थी कि बेटा सफल हो इसलिए उन्होंने माँ की बात रखने के लिए कोलकाता के मेट्रोपॉलिटन कॉलेज में इतिहास और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में एक पद स्वीकार कर लिया। लेकिन गृहस्थ जीवन में वह कभी नहीं बसे। कई समय तक मेट्रोपॉलिटन कॉलेज में इतिहास और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में एक पद स्वीकार किया।
1910 में वह गुरु प्रोमोथोलाल सेन के साथ मुंबई से बर्लिन गए। वहाँ उन्होंने विश्व धर्म कॉन्ग्रेस में भारत के प्रतिनिधि के रूप में सम्मेलनस शांति और भारत की मदद का संदेश दिया। उनके जीवन को समर्पित दर्शन संग्रहालय 2011 में पुणे में खोला गया।