Matabari Shakti Peeth: माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ, त्रिपुरा
Matabari Shakti Peeth: देवी भागनत पुराण के 108 औप दुर्गा सप्तशती और तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई है लेकिन सामान्य तौर पर मां शक्ति के 51 शक्तिपीठों के बारे में माना जाता है। इसमें एक शक्तिपीठ हैं, जो पूर्वोत्तर राज्य में स्थित हैं, जिनको त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है। मां के इस नाम पर ही पूर्वोत्तर राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा।
भगवती त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुरा
माता को त्रिपुर सुंदरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में इनसे सुंदर कोई नहीं है। कामख्या मंदिर के साथ ही त्रिपुर सुंदरी का मंदिर भी तंत्र साधना के लिए मशहूर है। यहां त्रिपुर सुंदरी मंदिर को स्थानीय लोग माता बाड़ी भी कहते हैं। इस स्थान की महत्ता और विशिष्टता कहानी मंदिर की पुरानी पांडुलिपियों मे दर्ज है। यहां नवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस शक्तिपीठ के बारे में और जानते हैं।
ऐसे बने मां के शक्तिपीठ
एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया था, जिसमें उन्होंने दामाद भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया था। माता सती यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन महादेव जाने के लिए माना कर रहें थे। इसके बाद भी सती यज्ञ में चली गईं। सती के पहुचने पर दक्ष ने माता अवहेलना की और उसके सामने ही महादेव के बारे में अपमानजनक बातें कहीं। अपने पति के बारे में कही गईं बातें सती बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए। यहीं से सती की शक्ति बनने की कथा शुरु हुई। यह खबर सुनकर महादेव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। यज्ञ नष्ट हो जाने के बाद महादेव सती के शव के साथ पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाने लगे। तब भगवान विष्णु ने महादेव का मोह भंग करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के कई टुकड़े कर दिए। जिस-जिस स्थान पर सती के अंग गिरे, वे शक्तिपीठ कहलाए और इनके साथ भैरव रूप में महादेव भी विराजमान हुए।
कूर्भपीठ के नाम से जाना जाता है यह शक्तिपीठ
भगवती त्रिपुर सुंदरी के दस महाविद्याओं में से एक सौम्य कोटी की माता माना जाता है। माता का यह मंदिर त्रिपुर राज्य के उदयपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर भारत के 51 महापीठों में से एक है और यहां माता का दायां पैर गिरा था। यहां मां भगवती को त्रिपुर सुंदरी और उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता के इस पीठ को कूर्भपीठ भी कहा जाता है। तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। यहां तंत्र-मंत्र करने वाले साधक आते हैं और अपनी सादना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं।
15वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण
माता के इस मंदिर का निर्माण महाराजा धन माणिक्य ने 15वीं शताब्दी में कराया था। लोक मान्यताओं के अनुसार राजा ने इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के लिए कराया था लेकिन महामाया ने राजा को सपने में मंदिर निर्माण का आदेश दिया और राजा से कहा कि वह उनकी मूर्ति को चित्तौंग से इस स्थान पर रख दें, इसके बाद राजा ने माता त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा की। यह मंदिर पूर्वोत्तर राज्य के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। हजारों की संख्या में भक्त प्रतिदिन मंदिर में माता के दर्शनों के लिए आते हैं और नवरात्रि के मौके पर इनकी संख्या बढ़ जाती है। यहां जो भक्त सच्चे मन से माता से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
त्रिपुर सुंदरी के ये भी हैं नाम
देवी ललिता को ही भगवती त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है। मां ललिता माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति हैं और इनके तीन नेत्र हैं। मां के चार हाथों में पाश, अंकुश और बाण सुशोभित हैं। भगवती त्रिपुर सुंदरी 16 (पोडश) कलाओं से परिपूर्ण हैं इसलिए इनको षोडशी भी कहा जाता है। इसके साथ ही भगवती त्रिपुर सुंदरी को राजेश्वरी, ललिता गौरी, ललिताम्बिका, ललिता, लीलावती आदि नामों से भी जाना जाता है। यह देवी पार्वती का तांत्रिक स्वरूप माना जाता है। देवी भगवत में बताया गया है मां भगवती वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर रहती हैं और भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना से ही पूरे होते हैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान कर देती हैं।