MANIKARNIKA GHAT: मणिकर्णिका घाट, वाराणसी
MANIKARNIKA GHAT: मणिकर्णिका घाट वाराणसी में एक प्रमुख दाह संस्कार घाट है, जो अग्निनत व्यक्तियों के लिए अंतिम विश्राम स्थल के रुप में कार्य करता है। हिन्दू परम्परा का मानना है कि इस घाट पर दाह संस्कार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति सुनिश्चित करता है, जिससे आत्मा की मोक्ष की ओर यात्रा आसान हो जाती है।
कहते हैं भगवान शिव के कुंडल घाट के पास एक कुंड में गिरे थे, तभी से इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा। वैसे यह कथा भी है कि भगवान शिव ने इसी जगह माता सती के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार किया, इसीलिए मणिकर्णिका को महाश्मशान भी कहते हैं।
मणिकर्णिका देवी कौन है?
काशी खंड ने मणिकर्णिका देवी की संरचना और रूप का विस्तार से वर्णन किया है जो बारह साल की लड़की के रूप में प्रकट होती है। वह एक स्पैटिक (क्रिस्टल) की तरह गोरी है, उसके कोमल बाल हैं। देवी को दिव्य सौंदर्य के रूप में वर्णित किया गया है। मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले भक्तों को इस देवता की पूजा करनी चाहिए।
विशेषता:-
इस घाट से जुड़ी दो कथांए हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिव जी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढ़ने को कहा। शिव जी उसे ढूंढ़ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? इस घाट की विशेषता ये हैं, कि यहा लगातार हिन्दु अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है। एक चिता की अग्नि समाप्त होने तक दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है, 24 घंटे ऐसा ही चलता है। वैसे तो लोग श्मशान घाटो में जाना नहीं चाहते, पर यहाँ देश विदेश से लोग इस घाट का दर्शन भी करने आते है। इस घाट पर ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है। वाराणसी में 84 घाटों में सबसे चर्चित घाट में से एक है मणिकर्णिका घाट।
इतिहास:-
ऐसा माना जाता है कि हजारों वर्षो तक भगवान विष्णु ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी कि पवित्र शहर काशी, जैसा कि वाराणसी को पहले जाना जाता था, दुनिया के तत्कालीन नियोजित विनाश के दौरान नष्ट न हो।