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Maa Danteshwari ki Doli: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के लिए मां दंतेश्वरी की डोली और छत्र जगदलपुर रवाना

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Maa Danteshwari ki Doli: शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन बस्तर के राजा के सुपुत्र कमल चंद्रभजं देव राज परिवार के साथ मां दंतेश्वरी को बस्तर दशहरा के लिए निमंत्रण देने दंतेवाड़ा पहुंचते हैं। ये परंपरा वर्षो से चली आ रही है जिसके बाद अष्टमी के दिन मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा अर्चना कर दंतेश्वरी माई जी की डोली को पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है। इसके बाद मां दंतेश्वरी की डोली को धूमधाम से बस्तर दशहरा मनाने के लिए जगदलपुर के लिए विदा किया जाता है, दंतेवाड़ा से जगदलपुर तक माताजी की छत्र की जगह-जगह स्वागत कर पूजा अर्चना की जाती है।

पुरानी कथाओं के अनुसार इस मंदिर की एक खासियत यह भी है की माता बस्तर दशहरा में शामिल होने मंदिर से बाहर साल में एक बार निकलती है। बस्तर दशहरा में रावण का दहन नहीं बल्कि रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाती है जिसमें माता की छत्र विराजित किया जाता है जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती है ,तब तक यहां के दशहरा नहीं मनाया जाता है।

मां महा अष्टमी के दिन दर्शन देने निकलती हैं बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व की रस्म 75 दिनों तक चलता है यह परंपरा करीब 610 साल पुरानी है। बदलते वक्त के साथ अब बस्तर की तस्वीर बदल रही है कभी नक्सली की दहशत की वजह से लोग यहां आने में सोचते थे लेकिन आज नवरात्रि के दिनों में लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है।

संखनी -डकनी नदी के तट पर करीब 12वीं और 13वीं शताब्दी से स्थित यह मंदिर कई मामले में बहुत खास है आदिकाल से मां दंतेश्वरी को बस्तर के लोग अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं ऐसा माना जाता है कि बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति की बगैर नहीं किया जाता है।

इसके अलावा तेलंगाना के कुछ जिले और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के लोग भी यहां मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं वहां के लोग भी बताते हैं की काकतीय राजवंश जब यहां आ रहे थे तब हम कुछ लोग वहां रह गए थे अब हम मां दंतेश्वरी को अपने इस देवी के रूप में पूजते हैं।

मां दंतेश्वरी के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जीया ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था तो उनके शरीर की 51 अंग देश भर के विभिन्न हिस्सों में गिरे थे ,और 52वां अंग मां का दांत यहां गिरा था इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदलते आ रही है माता के चमत्कारों ने लोगों के मन में आस्था विश्वास को और बढ़ा दिया है।

  • दंतेवाड़ा से चंद्रकांत सिंह क्षत्रिय की रिपोर्ट
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