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Kashi Vishwanath Jyotirlinga: काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक

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Kashi Vishwanath Jyotirlinga: काशी विश्वनाथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी यानी काशी में स्थित है, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग काशी प्राचीन सप्तपुरियों मे से एक है।

मान्यता- यहां महादेव के साथ ही देवी पार्वती भी विराजित हैं। यहां देवर्षि नारद के साथ ही अन्य सभी देवता आते है। और शिव पूजा करते है। इस क्षेत्र के संबंध में कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की यहां मृत्यु होती है, उसे मोक्ष मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था, और इसलिए इस मंदिर को लोकप्रिय रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर को हिन्दु शास्त्रों द्वारा शैव संस्कृति में पूजा का एक केंद्रीय हिस्सा माना जाता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है। यह वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है। यह मंदिर पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित है, और बारह ज्योतिर्लिंगस में से एक है, जो शिवमेटल के सबसे पवित्र हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कन्द पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋगदेव में नगर का उल्लेख आता है।

काशी विश्वनाथ मंदिर

भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिन्दु मंदिर है। यह भारत के उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर बनारस के विश्वनाथ गली में स्थित है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों सालों से पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है। ब्रह्मांड के भगवान।

ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था, और इसलिए इस मंदिर को लोकप्रिय रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर को हिन्दु शास्त्रों द्वारा शैव संस्कृति में पूजा का एक केंद्रीय हिस्सा माना जाता है।

इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रंथ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्री की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढ़ोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।

विश्वनाथ मंदिर को इतिहास में कई मुस्लिम शासकों द्वारा बार बार तोड़ा गया। मुगल शासक औरंगज़ेब इस मंदिर को गिराने वाला अंतिम मुस्लिम शासक था। जिसने मंदिर के स्थान पर वर्तमान ज्ञानवासी मस्जिद का निर्माण किया। मंदिर की वर्तमान संरचना1780 में इंदौर के मराठा शासक अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निकटवर्ती स्थान पर बनाई गई थी।

काशी विश्वनाथ का इतिहास

उत्तर प्रदेश के वाराणसी धरती की सबसे पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, भगवान के 12 ज्योतिर्लिंगों में शुमार इस मंदिर को विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है।

जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हे अपने घर ले जाने के लिए कहा, भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हे काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया। जिसका जीर्णोद्वार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया।

हिन्दू धर्म कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल में आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलाई जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठाजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वमित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।

मंदिर निर्माण

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1835 में 1000 कि.ग्रा. शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।

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