- Advertisement -spot_img
Homeराष्ट्रीयJustice BV Nagarathna: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपालों...

Justice BV Nagarathna: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपालों की भूमिका पर जताई गहरी नाराज़गी

- Advertisement -spot_img

Justice BV Nagarathna: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपालों की भूमिका को लेकर गहरी नाराज़गी जताई है।

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपाल की भूमिका पर नाराज़गी जताते हुए कहाकि – जहां काम करना चाहिए वहां काम नहीं कर रहे। जस्टिस नागरत्ना ने राज्यपालों की भूमिका को लेकर गहरी नाराजगी जताई।

सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने शनिवार को राज्यपालों की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने तीखे अंदाज में कहा कि राज्यपाल वहां भूमिका निभा रहे हैं, जहां उन्हें नहीं निभाना चाहिए। जब उन्हें एक्टिव होकर अपनी भूमिका को निभाना चाहिए, तब वो ऐसा नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों के खिलाफ मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए दुखद बताया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने अपने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

साथ ही कोर्ट ने एक अलग मामले में संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन से दी गई छूट के प्रश्न की जांच करने पर सहमति व्यक्त की है।

बेंगलुरु में एनएलएसआईयू पैक्ट कॉन्फ्रेंस में समापन मुख्य भाषण देते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आज के समय में दुर्भाग्य से भारत के कुछ राज्यपाल ऐसी भूमिका निभा रहे हैं, जो उन्हें नहीं निभानी चाहिए और जहां उन्हें निभाना चाहिए, वहां निष्क्रिय हैं।

सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों के खिलाफ मामले भारत में राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति की एक दुखद कहानी है।

राज्यपालों की निष्पक्षता विषय पर वकील और सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गाबाई देशमुख का हवाला देते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि राज्यपाल से कुछ कार्य किए जाने की अपेक्षा की जाती है।

हम अपने संविधान में राज्यपाल को शामिल करना चाहते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि अगर राज्यपाल वास्तव में अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत है और वह अच्छी तरह से काम करते हैं तो यह संस्था परस्पर विरोधी समूहों के बीच किसी तरह की समझ और सामंजस्य लाएगी।

यह केवल इसी उद्देश्य के लिए प्रस्तावित है। शासन का विचार राज्यपाल को पार्टी की राजनीति, गुटों से ऊपर रखना है और उसे पार्टी के मामलों के अधीन नहीं करना है।

सुप्रीम कोर्ट के जज की यह टिप्पणी कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत और राज्य की कांग्रेस सरकार के बीच कथित MUDA (मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) साइट आवंटन घोटाले को लेकर चल रही असहमति के बीच आई है, जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती का नाम सामने आया है।

गहलोत ने पिछले हफ़्ते सिद्धारमैया को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। गुरुवार को कर्नाटक सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को नोटिस वापस लेने की “दृढ़ता से सलाह” दी।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भारतीय संविधानवाद को और मजबूत करने के लिए राष्ट्र को ‘संघवाद, बंधुत्व, मौलिक अधिकारों और सैद्धांतिक शासन’ पर जोर देना चाहिए। केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच बढ़ते टकराव के बीच नागरत्ना ने रेखांकित किया कि राज्यों को ‘अक्षम या अधीनस्थ’ नहीं माना जाना चाहिए और मंत्र संवैधानिक शासन कौशल का होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखना होगा कि संघ और राज्य को क्रमशः राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महत्व के विषयों पर ध्यान देने का अधिकार है। राज्य के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय महत्वहीन नहीं हैं और न ही राज्यों को अक्षम या अधीनस्थ माना जाना चाहिए। संवैधानिक राजनेता की भावना और पक्षपातपूर्ण कूटनीति ही मंत्र होना चाहिए।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में वर्णित चार आदर्शों में बंधुत्व सबसे कम अपनाया जाने वाला आदर्श है और कहा कि बंधुत्व के आदर्श को प्राप्त करने का प्रयास “प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने मौलिक कर्तव्यों की स्वीकृति के साथ शुरू होना चाहिए, जो संविधान के अनुच्छेद 51ए के तहत उल्लिखित हैं।”

सुप्रीम कोर्ट की जज ने इस बात पर भी जोर दिया कि महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता से समाज को सच्ची रचनात्मक नागरिकता मिलेगी। उन्होंने कहा कि मुझे यह ध्यान रखना चाहिए कि सामाजिक सुधार और महिलाओं के आर्थिक शोषण के खिलाफ़ सबसे सुरक्षित साधन महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता है।

औपचारिक कार्यबल में भाग लेने, रचनात्मक रूप से योगदान देने और आगे बढ़ने की एक महिला की महत्वाकांक्षा अक्सर घरेलू कर्तव्यों और जिम्मेदारियों जैसे कि बच्चों की परवरिश या घरेलू कामों को पूरा करने में कमी के कारण बाधित होती है।

समाज में परिवर्तनकारी बदलाव और सच्ची रचनात्मक नागरिकता हासिल करने के लिए कानून के संरक्षण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि महिलाओं को मातृत्व और रोजगार के बीच समझौता न करना पड़े।

2021 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त की गई जस्टिस नागरत्ना कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रही हैं। सितंबर 2027 में भारत की मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने वाली जस्टिस नागरत्ना ने कई महत्वपूर्ण असहमतिपूर्ण राय दी हैं।

2023 में नोटबंदी को बरकरार रखने वाले शीर्ष अदालत के फैसले में जस्टिस नागरत्ना एकमात्र असहमति जताने वाली थीं, जिन्होंने उचित प्रक्रिया में खामियों को रेखांकित किया।

उसी वर्ष, 26 सप्ताह के भ्रूण से जुड़े गर्भपात के एक मामले में, उन्होंने भ्रूण के अधिकारों पर महिला की स्वायत्तता को प्राथमिकता दी। बेंच की दूसरी जज जस्टिस हिमा कोहली ने गर्भपात के खिलाफ फैसला सुनाया।

- Advertisement -spot_img
- Advertisement -spot_img
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -spot_img
Related News
- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here