Gaya Lok Sabha : बिहार के गया लोकसभा सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान है। पीएम मोदी यहाँ जीतन राम मांझी के लिए चुनाव प्रचार कर चुके हैं। मगर बड़ा सवाल क्या मांझी की नैया पार होगी?
Lok Sabha Election : लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती अब शुरू हो चुकी है। अंतिम ताकत झोंकने के लिए गया में पीएम मोदी का दौरा भी हो चुका। लेकिन, क्या जीतन राम मांझी की नैया इसी से पार हो जाएगी?
बिहार की गया (आरक्षित) सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। बाकी प्रत्याशी मैदान में क्या भूमिका निभाएंगे, वह बाद में पता चलेगा। फिलहाल ध्यान एनडीए और महागठबंधन पर ही है। दोनों के दिग्गज नेता अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए गया का दौरा पूर कर चुके हैं।
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एनडीए के सहयोगी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के प्रत्याशी जीतन राम मांझी को जिताने के लिए बहुत कुछ कह गए हैं। लेकिन, अब जब चुनाव प्रचार थमने वाला है तो यह देखने वाली बात होगी कि किसकी गाड़ी कहां भाग और कहां फंस सकती है।
यह अहम सवाल इसलिए है कि जीतन राम मांझी और कुमार सर्वजीत अपने जिले से लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी हैं। अपने जिले, इस लिहाज से कि यहीं से विधायक हैं। इसमें कुमार सर्वजीत का पलड़ा भारी है, क्योंकि वह बोधगया के राजद विधायक हैं। यह विधानसभा क्षेत्र गया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। दूसरी तरफ, जीतन राम मांझी इमामगंज से विधायक हैं। इमामगंज विधानसभा औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर है।
Gaya Lok Sabha : बिहार सरकार जातिगत जनगणना करा चुकी है, हालांकि जनगणना के आंकड़े जिलावार नहीं जारी किए गए। इसलिए, सारी राजनीति जातियों की अनुमानित संख्या के आधार पर है। इस अनुमान के अनुसार सबसे बड़ी आबादी भुइयां (महादलित) की है। इससे जीतन राम मांझी आते हैं। मौजूदा जदयू सांसद विजय मांझी भी इसी जाति से हैं। वह विरोध में नहीं, इसका फायदा मांझी को मिल रहा है।
संख्या के हिसाब से उसके बाद दुसाध, यानी पासवान बताए जाते हैं। इससे कुमार सर्वजीत हैं। मतलब, पीठ पर ही हैं। तीसरे नंबर पर राजपूतों की संख्या बताई जाती है। फिर मुस्लिम और पांचवें नंबर पर वैश्य-बनिया बताए जाते हैं। मतलब, अपनी जाति और भाजपा के पारंपरिक वोटरों की बड़ी आबादी के हिसाब से मांझी फायदे में दिखते हैं।
कुमार सर्वजीत की जाति वही है, जो चिराग पासवान की है। स्थानीय राजनीति को समझने वाले इसी आधार पर कह रहे कि अगर चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस ने मिलकर मेहनत कर दी होती तो गारंटी की संभावना बन सकती थी।
Gaya Lok Sabha : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने समर्थकों से बार-बार अपील की कि वह हर बूथ पर उन्हें जिताएं। उन्हें यह क्यों कहना पड़ा? इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है। इस सीट पर हम-से प्रत्याशी उतरे हैं और इस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं का वैसा नेटवर्क नहीं है। एनडीए में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड के पास ही नेटवर्क है।
भाजपा को चूंकि बिहार की 40 में से 40 सीटों पर जीत की गारंटी चाहिए, इसलिए उसे कैडर की ताकत झोंकनी होगी। इसके अलावा जदयू से भी जमीनी सहयोग उसी तरह लेना होगा। इधर, महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और वामदलों के पास कैडर है। यह दोनों पूरी ताकत के साथ लगे हैं।
जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री रहते जो काम किया, उनमें कई लोकलुभावन प्रोजेक्ट रहे। उसका आज भी प्रभाव दिखता है। इसी तरह, कुमार सर्वजीत ने कृषि मंत्री रहते हुए 28 जनवरी तक बिहार में रही महागठबंधन सरकार में जो काम किया, उसका माइलेज उन्हें मिले तो आश्चर्य नहीं।
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से एनडीए समर्थित जदयू के विजय कुमार मांझी जीते थे। उन्हें 4.67 लाख वोट मिले थे। तब जीतन राम मांझी महागठबंधन समर्थित हम-से के प्रत्याशी थे और उन्हें 32.85 लाख वोट मिले थे।
दूसरी तरफ महागठबंधन से मांझी के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी निकलकर एनडीए में है। महागठबंधन के इंडी एलायंस का रूप धरने से किसी नए दल का प्रवेश नहीं हुआ है इस बार।
पिछली बार इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने 13 हजार वोट काटा था। इसमें दोनों मुख्य प्रत्याशियों का वोट हिस्सा था। दो प्रत्याशियों को यहां दो से ढाई प्रतिशत वोट मिला था, जबकि 3.14 प्रतिशत वोट NOTA के नाम पर गया था।
गया लोकसभा सीट पर ऊपर बताए गए सात प्रश्नों का जवाब प्रत्याशी अगर अगले कुछ घंटों में वास्तविक रूप से समझ लें और जमीनी तौर पर अंतिम प्रयास कर लें तो मतदान के साथ ही वह खुद को पक्का कर सकेंगे कि क्या होने वाला है।
रही बात दिग्गजों के प्रभाव की तो महागठबंधन में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की छवि का फायदा-नुकसान उनके कोर वोटर बखूबी समझते हैं। दूसरी तरफ, एनडीए में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही निर्णायक प्रभाव हैं। लोग मोदी की अपील और नीतीश की बातों पर चलते हैं तो मांझी की नैया पार लग सकती है।
दूसरी तरफ अगर लालू-तेजस्वी की बातों पर भरोसा करते हैं तो जदयू के विजय मांझी से लेकर हम-से को दी गई सीट फंस सकती है।