Gaura Devi: वाराणसी। राम नगरी अयोध्या के कर्मकांडी ब्राह्मणों की राम भक्त मंडली और कृष्ण नगरी मथुरा कारागार के बंदियों द्वारा तैयार खास अबीर-गुलाल की बौछार के बीच गौरा सुसराल विदा हुईं।
भगवान शंकर के साथ गौरी गणेश को गोद में लेकर रजत पालकी पर सवार होकर टेढ़ीनीम स्थित मंहत आवास से अपने ससुराल विश्वनाथ मंदिर रवाना हुईं। काशी वासियों ने शिव-पार्वती पर अबीर-गुलाल अर्पित कर होली उत्सव मनाया। बुधवार को महंत आवास पर एक लाख से अधिक भक्तों महंत आवास पहुंच कर शिव-गौरा के गौना के ठीक पहले उनसे होली खेली।
ब्रह्म मुहूर्त से संध्याबेला तक टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास में उत्सव रहा। पालकी के आगे-पीछे हजारों भक्तों की भीड़ शिव के स्वागत में बहुरंगी अबीर गुलाल उड़ाती रही। बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में शिव-गौरा का अभिषेक किया गया।बाबा और गौरा को बंगीय देवकिरीट, खादी के राजषी वस्त्र धारण कराए गए। इन्हें धारण कराने से पूर्व पं. वाचस्पति तिवारी ने सभी वस्त्राभूषणों की विशेष पूजा की।
पूरे दिन भक्तों द्वारा बाबा विश्वनाथ और माई महामाया को अबीर अर्पण करते रहे। चल प्रतिमाओं का दर्शन करने के लिए काफी संख्या में काशीवासी और विशिष्टजन पहुंचे। सुबह दस बजे से शाम पांच बजे की बीच एक लाख से अधिक लोगों ने काशी की लोक परंपरा में अपनी आास्था व्यक्त की। पालकी उठने का समय हो जाने के बाद भी लोग दर्शन के लिए कक्ष में प्रवेश करने के लिए भीड़ में जूझते रहे। डमरुओं की गर्जना बीच राजसी ठाट में बाबा, माता गौरा के साथ पालकी पर सवार हुए।
महंत आवास के बाहर मुख्य गली से मंदिर के मुख्यद्वार के बाहर अयोध्या और मथुरा से भेजे गए खास गुलाल उड़ाए गए। मंदिर से अर्चकों का दल महंत आवास पहुंचा। कपूर से आरती के बाद महंत पं.वाचस्पति तिवारी ने दोनों हाथों में जलतीं रजत मशाल दिखा कर पालकी उठाने का संकेत किया।
महंत परिवार के सदस्यों द्वारा पालकी उठाते ही चारों तरफ से अबीर और गुलाब की पंखुड़ियां उड़ाई जाने लगीं। शंखों का नाद होने लगा है। डमरूदल और शहनाई दल के पीछे-पीछे बाबा की पालकी विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़ी।
टेढ़ी नीम में नौ ग्रहेश्वर महादेव मंदिर से आगे बढ़ते ही विष्णु कसेरा के आवास से 21 किलो गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा से जो शुरुआत हुई उसका क्रम पूरे रास्ते में जगह-जगह खड़े भक्तों द्वारा जारी रहा।
बाबा और मां पार्वती की चल प्रतिमाएं टेढ़ीनीम स्थित महंत आसाव से निकाल कर साक्षीविनायक और ढुंढिराज विनायक होते हुए विश्वनाथ मंदिर तक गईं।