Chirag Paswan: सीएम नीतीश कुमार महागठबंधन को तार-तारकर अब एनडीए के साथ होकर सीएम बन गए हैं। ऐसे में छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले लोजपा रामविलास के चिराग पासवान अपने को कैसे समेटेंगे। हर कहीं इसकी चर्चा है। अब मामला लोकसभा चुनाव के सीट बंटवारे को लेकर भी पेचीदा हो गया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से एक बार फिर इस्तीफा हो गया। अब वह वापस ऐसी सरकार बनाने की तैयारी में हैं, जिसका वास्तविक जनादेश 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मिला था।
वह 2020 का विधानसभा चुनाव कभी नहीं भूलेंगे, यह कई बार दुहरा चुके हैं क्योंकि करीब दो दर्जन सीटों पर जदयू को हराने में चिराग पासवान की अहम भूमिका थी। उस याद को ताजा करने वाले चिराग पासवान अब नीतीश के सामने होंगे, साथ होंगे या खिलाफ; बड़ा सवाल यही उठ खड़ा हो गया है।
करीब डेढ़ साल नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी से दूर रहे और इस दौरान लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीब आ चुके हैं।
चार दिन पहले तक भाजपा को बिहार की 40 सीटों को अपने अलावा चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी आदि के बीच बांटना था। अब बड़े खिलाड़ी नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं तो छोटे दलों की परेशानी तय है।
इसी कारण एक चर्चा तेजी से उभर रही है कि राज्य सरकार में चिराग को मजबूत जगह दी जाएगी। ऐसा होता है या नहीं, यह आज जेपी नड्डा के पटना पहुंचने के बाद हो जाएगा।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा-जदयू-लोजपा ने साथ चुनाव लड़ा था। तब भाजपा-जदयू ने 17-17 सीटें रखी थीं और लोक जनशक्ति पार्टी को छह सीटें दी गई थीं। भाजपा और लोजपा का स्ट्राइक रेट 100 प्रतिशत था। जदयू को 17 में से एक सीट पर कांग्रेस ने हराया था।
लोकसभा चुनाव 2024 के पहले परिस्थितियां अलग हैं। चार दिन पहले और अलग थीं। चार दिन पहले जदयू साथ नहीं था। तब पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास), वर्तमान केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की लोजपा (राष्ट्रीय), पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक जनता दल और जीतन राम मांझी का दल हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा- सेक्युलर साथ थे।
लोजपा के दोनों धरों की दावेदारी के अलावा बाकी बिना सांसद वाले छोटे दल भी लोकसभा चुनाव में भागीदारी का इंतजार कर रहे थे। अब जदयू के आने के साथ बड़ी हिस्सेदारी का दावा नीतीश कुमार का है, क्योंकि पिछली बार चुने एनडीए के 39 में से 16 सांसद जदयू के हैं।
रविवार को नई सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 128 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंपा है। इसमें भाजपा के 78, जदयू के 45, हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा के चार के साथ इकलौते निर्दलीय विधायक हैं। मतलब, मांझी और निर्दलीय को साथ लाने की राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कवायद काम नहीं आयी। इस कवायद में कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी तक का नाम आया था।
इन पांच विधायकों के साथ नहीं आने पर जदयू को तोड़ने की कोशिश भी बेकार जाती, इसलिए लालू खेमा शांत है। दूसरी तरफ राजद के पास अब अपने 79 के अलावा कांग्रेस के 19 और वामदलों के 16 विधायक हैं। असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी के इकलौते विधायक भी विपक्ष में रहेंगे। यह हिसाब बता रहा है कि चिराग की लोजपा विधायकों के मामले में शून्य पर है।
ध्यान देने वाली बात है कि लोजपा के एक विधायक ने 2020 के चुनाव में जीत हासिल की थी, लेकिन जदयू ने उन्हें अपने साथ कर लिया। कुशवाहा के एक भी विधायक नहीं हैं। पशुपति पारस खेमे की लोजपा से भी कोई नहीं है। अब यह सभी विधानसभा चुनाव का इंतजार करने की जगह सामने दिख रहे 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी भागीदारी निश्चित तौर पर चाहेंगे।