Bihar Caste Survey: बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया है। इसके आंकड़े और विवरण (Break-up) सार्वजनिक करने की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश सुनाया है। अदालत ने कहा कि सरकार को जाति के आधार पर कराए गए सर्वे का विवरण सार्वजनिक करना होगा।
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने कुछ महीने पहले जाति आधारित सर्वेक्षण कराया है। इसका विवरण सार्वजनिक करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर हुई है। याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से कहा कि जाति सर्वेक्षण का ‘डेटा ब्रेकअप’ सार्वजनिक किया जाए। अदालत ने कहा, मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी को होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा, बिहार में कराए गए जाति सर्वेक्षण का डेटा जनता को उपलब्ध नहीं कराए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट चिंतित है। अगर कोई व्यक्ति सर्वेक्षण के किसी विशेष निष्कर्ष को चुनौती देना चाहता है तो उसके पास सर्वेक्षण का डेटा होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, अंतरिम राहत का कोई सवाल ही नहीं उठता।
उच्च न्यायालय का आदेश राज्य सरकार के फैसले के पक्ष में है। डेटा सार्वजनिक डोमेन में डाला जा चुका है। अब केवल दो-तीन पहलू बचे हैं। पहला कानूनी मुद्दा है। दूसरा सवाल उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता का है। तीसरा सवाल, सरकार की तरफ से कराए गए सर्वेक्षण की वैधता का है।
शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा, सर्वेक्षण का डेटा सार्वजनिक होने के बाद बिहार सरकार के अधिकार इसे अंतरिम रूप से लागू करना शुरू कर चुके हैं।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) श्रेणी में आरक्षण बढ़ा कर कुल 75 प्रतिशत कर दिया गया है। पहले यह केवल 50 प्रतिशत था।
दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। अदालत के मुताबिक, जहां तक आरक्षण बढ़ाने की बात है, इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देनी होगी।
इस पर रामचंद्रन ने कहा, मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य सरकार सर्वेक्षण के डेटा पर कार्रवाई कर रही है। इसलिए मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, ताकि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए बहस कर सकें। हालांकि, अदालत ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
इस मुकदमे में बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने कहा, जाति आधारित सर्वेक्षण का डेटा ब्रेक-अप सहित सार्वजनिक डोमेन में डाला जा चुका है। कोई भी इसे वेबसाइट पर विजिट करने के बाद देख सकता है। बिहार सरकार की दलील पर जस्टिस खन्ना ने पूछा, सरकार किस हद तक डेटा को रोक सकती है?
Bihar Caste Survey: अदालत ने वकील श्याम दीवान से कहा, ‘आप देखिए, डेटा का पूरा ब्रेक-अप सार्वजनिक डोमेन में होना चाहिए, ताकि कोई भी इससे निकले निष्कर्ष को चुनौती दे सके। जब तक आंकड़े सार्वजनिक डोमेन में नहीं होंगे, सर्वेक्षण को चुनौती नहीं दी जा सकती। पीठ ने दीवान से जाति सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई है। बीते एक अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट में पारित आदेश में बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था।
उच्च न्यायालय में जाति-आधारित सर्वेक्षण के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना उच्च न्यायालय ने 101 पन्नों का आदेश पारित किया था। अदालत ने कहा था, ‘कोर्ट राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाती है। सर्वेक्षण का मकसद न्याय के साथ विकास प्रदान करना है। सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार भी है।
गौरतलब है कि अक्तूबर, 2023 में बिहार सरकार के प्रभारी मुख्य सचिव विवेक सिंह ने जाति सर्वे की रिपोर्ट आंशिक रूप से जारी किए थे। इसके अनुसार, बिहार में सामान्य वर्ग के लोगों की आबादी 15 प्रतिशत है।
पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत से ज्यादा है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी करीब 20 फीसदी है। सरकार की ओर से कुल 214 जातियों के आंकड़े जारी किए गए हैं। इनमें कुछ ऐसी जातियां भी हैं जिनकी कुल आबादी सौ से भी कम है।
Bihar Caste Survey: 214 जातियों के अलावा 215वें नंबर पर अन्य जातियों का भी जिक्र रिपोर्ट में किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी 13,07,25,310 है। वहीं कुल सर्वेक्षित परिवारों की संख्या 2,83,44,107 है। इसमें पुरुषों की कुल संख्या छह करोड़ 41 लाख और महिलाओं की संख्या छह करोड़ 11 लाख है। राज्य में प्रति 1000 पुरुषों पर 953 महिलाएं हैं।
बिहार में 81.99 प्रतिशत यानी लगभग 82% हिंदू हैं। इस्लाम धर्म के मानने वालों की संख्या 17.7% है। शेष ईसाई सिख बौद्ध जैन या अन्य धर्म मानने वालों की संख्या 1% से भी कम है। राज्य के 2146 लोगों ने अपना कोई धर्म नहीं बताया।
Bihar Caste Survey: जाति सर्वेक्षण से जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि बिहार में जब भारतीय जनता पार्टी के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी सरकार में थी, तभी बिहार विधानसभा और विधान परिषद ने राज्य में जाति आधारित गणना कराए जाने का प्रस्ताव पारित किया था। 1 जून 2022 को सर्वदलीय बैठक में जाति आधारित गणना के लिए प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
Bihar Caste Survey: जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एक सोच एक प्रयास’ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। इसके अलावा कई अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं। एक याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की तरफ से भी दायर की गई है। उन्होंने राज्य सरकार की अधिसूचना को संवैधानिक जनादेश के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा, केवल केंद्र सरकार ही जनगणना कराने का अधिकार रखती है।