Assembly Election: लोकसभा चुनाव के तगड़े झटके के बाद बीजेपी की आगामी चार राज्यों कॆ विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति को लेकर उलझनें बढ़ गई हैं। पार्टी आक्रामक और संतुलित चुनाव अभियान को लेकर पसोपेश में है।
बीजेपी के एक वर्ग का मानना है कि इस समय विपक्ष के दबाव में आने के बजाय पार्टी को पहले की तरह अपना आक्रामक अभियान ही जारी रखना चाहिए। हालांकि, इस रणनीति से नुकसान होने की भी आशंका है, क्योंकि विपक्षी इंडिया गठबंधन के दलों में विरोधाभास के बावजूद भाजपा विरोधी सुर नहीं बदले हैं।
बता दें कि बीजेपी ने आगामी चार राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रभारी तैनात कर दिए थे। इन नेताओं ने राज्यों में जाकर शुरुआती दौर की बैठक भी की हैं।
सूत्रों के अनुसार, चुनाव प्रभारियों की शुरुआती रिपोर्ट बहुत अच्छी नहीं है। सभी राज्यों में संगठन को लेकर दिक्कतें बढ़ी हुई हैं। ऐसे में विपक्षी चुनौती का सामना करना बीजेपी के लिए काफी मुश्किलों भरा होगा। यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व इस समय संगठनात्मक समस्याओं को सुलझाने में जुटा हुआ है, ताकि चुनाव अभियान को गति दी जा सके।
इतना ही नहीं पार्टी के सामने एक बड़ा मुद्दा चुनाव अभियान को लेकर भी है। लोकसभा चुनाव में और उसके पहले के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विपक्ष के खिलाफ बेहद हमलावर तरीके से आक्रामक अभियान चलाया था। इसका उसे फायदा भी हुआ था.
वहीं लेकिन लोकसभा में कई राज्यों में उसे इसका नुकसान भी उठाना पड़ा है। खासकर जहां संगठन में नाराज़गी थी। झारखंड और महाराष्ट्र में भी संगठन में कुछ समस्याएं रही हैं।
हरियाणा में भी मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद बीजेपी सामाजिक समीकरण सुधार नहीं पा रही है, उल्टे बिगड़ने की आशंका है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली मज़बूती से भी भाजपा के सामाजिक समीकरण के प्रभावित होने की आशंका है। खासकर, ब्राह्मण और दलित समुदाय को लेकर पार्टी सशंकित है। ये कांग्रेस का साथ दे सकते हैं।
महाराष्ट्र में भाजपा का अपना गठबंधन, विपक्षी गठबंधन के सामने लोकसभा चुनाव में भी काफी कमजोर पड़ा था। अब विधानसभा चुनाव में भी यही समस्या सामने आ रही है। ऐसे में पार्टी के लिए अपने गठबंधन के मुख्यमंत्री के चेहरे को जनता के सामने पेश करने में भी दिक्कत आ रही है, क्योंकि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जाने पर एनडीए को बहुत बड़ी सफलता मिलने की संभावना नहीं है।
भाजपा के भीतर भी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को आगे रखने की मांग बढ़ रही है। अजित पवार पर तो फिलहाल भरोसा ही नहीं किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर में घाटी में बीजेपी की समस्याएं बरकरार हैं। अभी यह तय नहीं है कि पार्टी घाटी की सीटों पर किस तरह चुनाव लड़ेगी। अपने उम्मीदवार उतारेगी या कुछ निर्दलीयों को समर्थन देगी। जम्मू क्षेत्र के लिए पार्टी की तैयारी तेज हो चुकी और वहां पर पार्टी को बड़ी सफलता मिलने की भी उम्मीद है।
झारखंड में भाजपा के बड़े नेताओं के झगड़े अभी भी उलझे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के बीच तनाव की खबरें केंद्रीय नेतृत्व को परेशान करती रहती हैं। हालांकि, पार्टी के दो बड़े नेता चुनाव प्रभारी के रूप में इस प्रदेश में तैनात हैं। इनमें शिवराज सिंह चौहान भी हैं, जिनको संगठन, सरकार और चुनाव तीनों ही क्षेत्र में महारत हासिल है। पार्टी को उम्मीद है कि झारखंड में वह जल्द बेहतर हालत में चुनावी तैयारी शुरू कर देगी।
इन सब के साथ भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मदद की भी ज़रूरत है, क्योंकि हाल के दिनों में संघ के नेताओं ने परोक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व को आड़े हाथ भी लिया है।
सूत्रों के अनुसार, जल्द भाजपा और संघ नेतृत्व के बीच समन्वय बैठक भी बुलाई जा सकती है, ताकि जिन मुद्दों को लेकर अंदरूनी तौर पर मतभेद है, उनको समाप्त कर संघ का पूरा सहयोग हासिल किया जा सके। संघ के सहयोग से उसका संगठन भी मजबूत होगा और कार्यकर्ताओं में भी ऊर्जा आएगी।