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Akhilesh PDA: अखिलेश यादव ने BJP को PDA पर फिर घेरा, उपचुनाव से पहले दागे 25 सवाल

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Akhilesh PDA: समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने PDA के मुद्दे पर BJP को फिर घेरा है। उपचुनाव से पहले 25 सवाल दागे।

अखिलेश ने उपचुनाव से पहले भाजपा पर 25 सवालों का बाउंसर भी मारा है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर इन 25 सवालों को पोस्ट करते हुए लिखा कि PDA प्रश्नों के रूप में एक लंबी सूची भाजपा वालों की प्रतीक्षा कर रही है।

लोकसभा चुनाव में मिली भारी सफलता के बाद यूपी में होने वाले उपचुनावों को लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बेहद आक्रामक मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं। वह भाजपा को अपने मुद्दों पर चलने को मजबूर कर रहे हैं। बार-बार आरक्षण और PDA के नाम पर निशाने पर ले रहे हैं।

अखिलेश यादव ने यहां तक कहा कि बांटने की राजनीति करने वाले खुद बंट गए हैं। पन्ना प्रमुखों की बात भाजपा करती थी लेकिन वह इतिहास बन गए हैं। अखिलेश ने उपचुनाव से पहले भाजपा पर 25 सवालों का बाउंसर भी मारा है।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर इन 25 सवालों को पोस्ट करते हुए लिखा कि PDA प्रश्नों के रूप में एक लंबी सूची भाजपा वालों की प्रतीक्षा कर रही है।

अखिलेश ने कहा कि अब जब भाजपा के संगी-साथी कह रहे हैं कि वो बूथ पर जाकर व्यवस्था संभालेंगे तो इसका मतलब साफ है कि वो लोकसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक पराजय को देखते हुए ये मानकर चल रहे हैं कि भाजपा का कार्यकर्ता हताश होकर बूथ छोड़कर भाग चुका है या फिर अब भाजपा के मुखौटाधारी केवल सत्ता लोलुप संगी-साथियों को भाजपा के कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं रहा है।

उन्होंने कहाकि दरअसल चुनावी हार के बाद भाजपाई गुटों ने आपस में विश्वास खो दिया है। इसका एक और पहलू यह भी है कि भाजपा का ‘संगी-साथी’ पक्ष ये दिखाना चाहता है कि हार का कारण वो नहीं था, वो तो अभी भी शक्तिशाली है, कमज़ोर तो भाजपा हुई है।

इन दोनों ही परिस्थितियों में यह तो साबित होता है कि भाजपाइयों ने हार स्वीकार कर ली है और अब भविष्य के लिए बेहद चिंतित हैं, लेकिन आपस में दोषारोपण करके, न तो ये एक-दूसरे का भरोसा जीत पाएंगे और न ही कोई आगामी चुनाव। बाँटने की राजनीति करनेवाले लोग ख़ुद बँट गये हैं।

अखिलेश ने कहा कि भाजपा अपनी चाणक्य नीति के तहत जिन ‘पन्ना प्रमुखों’ की बात करती थी, अब क्या वो इतिहास बन गये? आज अगर वो उपलब्ध नहीं हैं तो उसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। अब भाजपा के जो गिने-चुने कार्यकर्ता बाकि हैं वो ये सोचकर हताश हैं कि वर्तमान परिस्थिति में, जबकि समाज का 90% PDA समाज जाग उठा है और PDA की बात करनेवालों के साथ खड़ा है तो फिर वो किसके पास जाकर वोट माँगें और 90% PDA समाज के सामने आकर क्यों उनके विरोधी होने का ठप्पा ख़ुद पर लगाएं, आख़िरकार उन्हें भी तो उसी 90% समाज के बीच ही रहना है।

अखिलेश ने तंज कसते हुए कहा कि ऐसे भूतपूर्व भाजपाई पन्ना प्रमुख ये सच्चाई भी जान चुके हैं कि भाजपा में किसी की कोई सुनवाई नहीं है, तो ऐसे दल में रहकर कभी भी कोई मान-सम्मान-स्थान उन्हें मिलनेवाला नहीं है। इसीलिए वो ऐसे उन अन्य दलों में ठिकाना ढूंढ रहे हैं, जो सच में जनता के साथ हैं और जनता उन जन-हितैषी दलों के साथ। वो ऐसे दलों की सच्चाई भी जान चुके हैं जो भाजपा की राजनीति के मोहरे बनकर काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहाकि वो देख रहे हैं कि जनता अब PDA की एकता और एकजुटता के साथ है क्योंकि PDA की सकारात्मक राजनीति लोगों को जोड़ती है और जनता के भले के लिए राजनीति को एक सशक्त माध्यम मानती है। इसीलिए समाज का अंतिम पंक्ति में खड़ा सर्वाधिक प्रताड़ित और शोषित-वंचित समाज भी PDA में ही अपना भविष्य देख रहा है।

आज़ादी के बाद सामाजिक-मानसिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्यों में PDA सर्वाधिक शक्तिशाली और सफल क्रांतिकारी आंदोलन बनकर उभरा है। PDA के लिए राजनीति साधन भर है, साध्य है समाज का कल्याण। इसके ठीक विपरीत भाजपा के लिए चुनावी जीत और सत्ता की किसी भी तरह प्राप्ति करके जनता के हितों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार करना ही साध्य है।

अखिलेश ने कहा कि इन्हीं सब कारणों से भाजपा में ज़मीनी और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का सूखा पड़ गया है। अब जब ये भाजपाई संगी-साथी गाँव-गलियों में जाएँगे तो जनता के सवालों की लंबी सूची उनका इंतज़ार कर रही होगी।

PDA प्रश्नों के रूप में एक लंबी सूची उनकी प्रतीक्षा कर रही होगी, जो पूछेगी

छुट्टा जानवरों से निजात दिलवाने का झूठा वादा क्यों किया?

काले क़ानून लाकर किसानों की भूमि क्यों हड़पनी चाही?

किसानों पर गाड़ी क्यों चढ़वायी?•-किसानों को लाभकारी एमएसपी क्यों नहीं दिया?

संविधान की समीक्षा और उसे बदलने की बात क्यों करी?

69000 में आरक्षण का हक़ क्यों मारा?

आरक्षण का हक़ मारते हुए, पिछले दरवाज़े से लेटरल भर्ती का षड्यंत्र क्यों रचा?

नौकरियों की जगह संविदा की व्यवस्था लाकर आरक्षण का अधिकार क्यों छीना?

अग्निवीर सैन्य भर्ती लाकर युवाओं का भविष्य बर्बाद क्यों किया?

पुलिस भर्ती में हेराफेरी क्यों करी?

नीट व अन्य पेपर लीक क्यों करवाए?

पैसेवालों को लाभ पहुँचाने के लिए महँगाई को बेतहाशा बढ़ने क्यों दिया?

15 हज़ार खाते में देने का महाझूठ क्यों बोला?

नोटबंदी व जीएसटी से काम-कारोबार तबाह क्यों किया?

नज़ूल व वक़्फ़ भूमि को हड़पने की कोशिश क्यों करी?

लाखों लोगों के घर-मकान-दुकान पर बुलडोज़र क्यों चलवाया?

ज़मीनों का सही मुआवज़ा क्यों नहीं दिया?

महिला का शोषण करनेवालों को राजनीतिक प्रश्रय क्यों दिया?

मज़दूरों की मज़दूरी में बढ़ोतरी क्यों नही करी?

ग़रीबों के नाम पर चल रही योजनाओं में भ्रष्टाचार क्यों होने दिया?

प्रेस के साथ अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोटने के लिए क़ानून क्यों लाए?

बैंकों में पेनल्टी लगाकर जनता की बचत का पैसा क्यों हड़पा?

शिक्षा और सेहत को निजी हाथों में देकर महंगा क्यों किया?

समाज के प्रेम, सौहार्द, भाईचारे को ख़त्म करने की साज़िश क्यों करी?

अखिलेश ने आगे लिखा कि ऐसे अनगिनत सवाल हर पगडंडी-पंचायत, नुक्कड़-मोड़, बाज़ार-हाट, चौक-चौबारे पर भाजपा के संगी-साथियों का इंतज़ार कर रहे हैं। अब जनता भाजपा के संगी-साथियों से ये कहने को बेसब्र है कि : जो जनता के साथ नहीं, उससे करनी बात नहीं।”,

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