प्रजनन दर 6.2 से दो पर आई; 2050 तक 1.3 होने का अनुमान
Fertility Rate in India: भारत में साल 1950 से अब तक प्रजनन क्षमता की दर 6.2 से घटकर दो तक पहुंची है। इस तरह की गिरावट के चलते वर्ष 2050 तक यह दर 1.3 रह जाएगी।
लैंसेट के शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रजनन दर के ये आंकड़े वैश्विक रुझानों के अनुरूप हैं। साल 1950 के दौरान भारत में एक महिला ने औसतन पांच या उससे अधिक बच्चों को जन्म दिया, लेकिन 2021 तक आते आते प्रति महिला दो बच्चों का भारत में हर साल प्रजनन दर में कमी दर्ज की जा रही है।
साल 1950 से अब तक की स्थिति देखें तो यह दर 6.2 से घटकर दो तक पहुंची है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस तरह की गिरावट के चलते वर्ष 2050 तक यह दर 1.3 रह जाएगी। यह जानकारी मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रजनन दर के ये आंकड़े वैश्विक रुझानों के अनुरूप हैं। साल 1950 के दौरान भारत में एक महिला ने औसतन पांच या उससे अधिक बच्चों को जन्म दिया, लेकिन 2021 तक आते आते प्रति महिला दो बच्चों का जन्म हुआ।
अध्ययन में पाया गया कि 2021 में दुनियाभर में 12.9 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ। यह आंकड़ा साल 1950 में जन्म लेने वाले 9.3 करोड़ बच्चों की तुलना में अधिक, जबकि 2016 में पैदा हुए 14.2 करोड़ से कम है। वहीं, भारत में साल 1950 में 1.6 करोड़ से अधिक बच्चों का जन्म हुआ और 2021 में यह संख्या 2.2 करोड़ रही। 2050 में यह तकरीबन 1.3 करोड़ रहने का अनुमान है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) 2021 फर्टिलिटी एंड फोरकास्टिंग कोलैबोरेटर्स के शोधकर्ताओं का कहना है कि 21वीं सदी के दौरान कई कम आय वाले देशों को उच्च प्रजनन क्षमता के मुद्दों का सामना करना पड़ेगा। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि अधिकतर बच्चे दुनिया के कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों में पैदा होंगे। 2021 से 2100 तक वैश्विक जीवित जन्मों में कम आय वाले देशों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से लगभग दोगुनी होकर 35% हो जाएगी।
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि जब तक सरकार बढ़ती आबादी की चुनौतियों का समाधान करने पर काम नहीं करेगी तब तक इनके कारण बुनियादी ढांचे पर दबाव रहेगा।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने बताया कि इस अध्ययन के निष्कर्षों का भारत के लिए गहरा प्रभाव है। इसमें बढ़ती आबादी, श्रम बल की कमी, और लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण संभावित सामाजिक असंतुलन जैसी चुनौतियां शामिल हैं। हालांकि, भारत के लिए ये चुनौतियां कुछ दशक दूर हैं, हमें भविष्य के लिए व्यापक दृष्टिकोण के साथ कार्रवाई शुरू करने की जरूरत है।