CAA: भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून-2019 (सीएए) को लागू कर लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले हिंदुत्व के तरकश में एक और तीर सजा लिया है।
CAA: भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून-2019 (सीएए) को लागू कर लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले हिंदुत्व के तरकश में एक और तीर सजा लिया है। पार्टी की पूरी रणनीति बेरोजगारी, महंगाई और जाति गणना का सवाल खड़ा करने की कोशिश में जुटे विपक्ष को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की पिच पर उतारने की है।
सरकार की रणनीति और उम्मीदों के अनुरूप ही इस मामले में विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। विपक्षी दल सीएए के साथ सरकार की आलोचना कर रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने इसे विभाजनकारी और गोडसे की सोच पर आधारित फैसला बताया है।
वहीं, कांग्रेस ने इसे चुनाव से पहले बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमृल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने तो इसे पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया है।
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़े अहम मुद्दों को ताबड़तोड़, मगर चरणबद्ध तरीके से अमली जामा पहनाया। सत्ता में आते ही पहले साल 2019 के मानसून सत्र में तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया। फिर इसी सत्र में 5 अगस्त को अचानक जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दशकों पुराने अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया। उसी साल, नवंबर में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राममंदिर के पक्ष में फैसला दिया। इसके महज एक महीने बाद शीतकालीन सत्र में सरकार सीएए पर मुहर लगवाने में कामयाब रही।
भाजपा के पास हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़े कई मुद्दे और उपलब्धियां हैं। इसके बावजूद ठीक चुनाव से पहले सीएए लागू करने के अलग सियासी निहितार्थ हैं। दरअसल, देश में एक बड़ा वर्ग हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से प्रभावित है। यही भाजपा का पंरपरागत और मजबूत मतदाता वर्ग है। चुनाव में उतरने से पहले भाजपा चाहती है कि इस विचारधारा से जुड़े 22 से 25 फीसदी मतदाता बीते दो चुनाव की तरह ही इस चुनाव में भी मजबूती और पूरी आक्रामकता के साथ उससे जुड़े रहें।