Amit Shah on Naxal: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई। उन्होंने कहा, वामपंथी चरमपंथ पर हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वह आज आखिरी सांस ले रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने विकास सुरक्षा के दृष्टिकोण से नक्सलियों को करारा झटका दिया है। उन्होंने कहा कि वामपंथी उग्रवाद अब आखिरी सांस ले रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की दूरदर्शी नीतियों की वजह से नक्सलवाद ने अपना प्रजनन भूमि को खो दिया है।
शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर ‘नक्सल फ्री भारत’ हैशटैग के साथ कई पोस्ट किए। इसमें उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए आक्रामक रणनीति अपनाई। उन्होंने कहा, वामपंथी चरमपंथ पर हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वह आज आखिरी सांस ले रहा है।
गृह मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) ने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के बुनियादी ढांचे का निर्माण किया और नक्सल प्रभावित इलाकों में रहने वाले गरीबों का दिल जीता। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शी नीतियों के कारण वामपंथी उग्रवाद ने अपना आधार खो दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास और सुरक्षा के दृष्टिकोण से नक्सलवाद को करारा झटका दिया है। शाह ने कहा, सरकार ने समग्र विकास के लिए राज्य सरकारों को साथ लेकर लोगों का भरोसा जीता है।
उन्होंने कुछ वीडियो भी पोस्ट किए, जिनमें नक्सली मुद्दों, तबाही और लोगों के हताहत होने और सरकार के इससे निपटने के तरीकों को दिखाया गया है।
गृहमंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2004-14 की तुलना में 2014-24 के दशक में वामपंथी उग्रवाद से जुड़ी हिंसा में 52 फीसदी की कमी आई है। जबकि इसी अवधि में मौतों की संख्या में 69 फीसदी (6035 से घटकर 1968) की कमी आई है।
इसी तरह वामपंथी चरण पंथ की घटनाएं 14,862 से घटकर 7,128 रह गई हैं। वामपंथी उग्रवाद से होने वाली सुरक्षा बलों की मौतों की संख्या 72 फीसदी घटी है। साल 2004-14 तक 1750 सुरक्षा बलों की मौत हुई, जबकि 2014-23 के दौरान 485 जवानों की मौत हुई। इसी तरह नागरिकों की मौत की संख्या भी 68 फीसदी कम (4285 से घटकर 1383) हुई है।
साल 2010 में हिंसा प्रभावित जिलों की संख्या 96 थी, जो 2022 में घटकर 45 (53 फीसदी कम) हो गई। इसके साथ ही, हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस थानों की संख्या घटकर 2022 में 176 हो गई, जो 2010 में 465 थी।