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Bharat Ratna Karpuri Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत मिलेगा भारत रत्न

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गणतंत्र दिवस से पहले केंद्र सरकार का बड़ा एलान

Bharat Ratna Karpuri Thakur: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाएगा। केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की 100वीं जयंती से एक दिन पहले यह सम्मान देने का एलान किया है। कर्पूरी ठाकुर पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाने जाते थे।

आम तौर पर केंद्र सरकार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों और कभी-कभी भारत रत्न का एलान करती है। इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले ही भारत रत्न के बारे में एलान कर दिया है। 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती है। इसकी पूर्व संध्या पर उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा हुई है।

Bharat Ratna Karpuri Thakur: कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर साधारण नाई परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि पूरी जिंदगी उन्होंने कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना सियासी मुकाम हासिल किया। यहां तक कि आपातकाल के दौरान तमाम कोशिशों के बावजूद इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थीं।

Bharat Ratna Karpuri Thakur: कर्पूरी ठाकुर 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। महज ढाई साल के कार्यकाल में उन्होंने समाज के दबे-पिछड़ों लोगों के हितों के लिए काम किया।बिहार में मैट्रिक तक पढ़ाई मुफ्त की दी।

वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया।

इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए।

आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।

चुनावी विश्लेषकों की मानें तो कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 1988 में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन इतने साल बाद भी वो बिहार के पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं।

Bharat Ratna Karpuri Thakur: गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी पकड़ बनाने के मकसद से कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं। यही वजह है कि 2020 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ‘कर्पूरी ठाकुर सुविधा केंद्र’ खोलने का ऐलान किया था।

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