Mahant Avaidyanath: अपनी सनातन परंपरा में आत्मा अजर अमर होती है। 12 सितंबर 2014 को ब्रह्मलीन हुए गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ (बड़े महराज) की आत्मा इन दिनों बहुत खुश होगी। क्योंकि वह राम मंदिर आंदोलन के नायकों में से थे। उनके पास मंदिर आंदोलन के दौरान दो सबसे अधिक अहम पदों (राम जन्म भूमि यज्ञ समिति और राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष) थे। ये दायित्व इस बात का प्रमाण है कि आजादी के आंदोलन के बाद देश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने वाले राम मंदिर आंदोलन में उनका क्या कद था?
Mahant Avaidyanath: उम्र भर जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण ही तमन्ना रही
एक ऐसा संत जो आंदोलन से जुड़े सबके लिए स्वीकार्य था। जिसकी जिंदगी में दो ही इच्छा थी। अयोध्या में रामलला की जन्म भूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण और सामाजिक समरसता।
Mahant Avaidyanath: वह चाहते थे कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिस तरह से उस समय समाज के वंचितों के त्राता बने थे। जिस तरह समाज के इस वर्ग को समय समय पर उचित सम्मान देकर खुद से जोड़ा था। लोगों को सामाजिक समरसता का संदेश दिया, उसी तरह बहुसंख्यक हिन्दू समाज भी ऊंच नीच, छुआछूत और अस्पृश्यता को छोड़ कर एक जुट हो।
इसके लिए अपने हर संबोधन में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस से अहिल्या का उद्धार, वन गमन के दौरान निषाद राज को गले लगाना, गिद्ध राज जटायू का अपने पिता की तरह अंतिम संस्कार, दलित सबरी के जूठे बेर खाना, कोल, किरात और गिरिजनों से सद्भाव स्थापित करने का उदाहरण अनिवार्य रूप से देते थे।
साथ ही इसका कारण भी गिनाते थे। उनके मुताबिक हिंदू समाज की इन कुरीतियों की वजह से समाज का बंटा होना ही हमारी हजारों वर्ष की गुलामी की मूल वजह था। आज जो लोग जाति, पंथ, भाषा के आधार पर समाज को बांट रहे हैं वह समाज और राष्ट्र के दुश्मन हैं। अपने राजनैतिक हित के लिए ऐसा करना पाप है। इतिहास ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करेगा।
अब जब उनके ही काबिल शिष्य, गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में अयोध्या में दिव्य और भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। राम के जीवन से जुड़े उन सभी पात्रों को जो सामाजिक समसरसता के प्रतीक हैं, को उचित जगह दिया जा रहा है, तब उनका खुश होना स्वाभाविक है।
Mahant Avaidyanath: उनके आत्मा की यह खुशी तब और बढ़ जाती होगी जब उनको मंदिर आंदोलन के बुनियाद के रूप में अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के योगदान की याद आती होगी। याद तो उन सारे लोगों (ब्रह्मलीन महंत रामचन्द्रदास परमहंस, महंत अभिराम दास, देवरहा बाबा, स्वामी करपात्री महाराज, बलरापुर स्टेट के महाराज पाटेश्वरी सिंह, मोरोपंत पिंगले, विशाल हिंदू एकता के पैरोकार और विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अशोक सिंघल, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, कन्हैया लाल माणिक मुंशी, गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को नई ऊंचाई देने वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार (भाईजी), नानाजी देशमुख, बाबा राघवदास, विष्णु हरि डालमिया, दाऊदयाल खन्ना, इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल, गोपाल सिंह विशारद।
एचवी शेषाद्रि, केएस सुदर्शन, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी वामदेव, श्रीश चंद दीक्षित, राजमाता विजया राजे सिंधिया, आचार्य धर्मेंद्र, उनकी भी जिन्होंने इसके लिए तमाम कष्ट सहे और जेल गए) इनमें से कई लोग ऐसे थे जिनका मंदिर आंदोलन के दौरान महंत अवेद्यनाथ से अक्सर मिलना होता।
Mahant Avaidyanath:आंदोलन की रणनीति के बाबत लंबी गुफ्तगू होती। यकीनन 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे के ध्वंस के दौरान खुद को राम के नाम पर बलिदान देने वाले रामभक्तों और 1990 में युवा कोठरी बंधु शरद और रामकुमार कोठरी सहित तमाम कारसेवकों की भी आती होगी जिनके खून से तब अयोध्या रक्त रंजित हुई थी उनकी भी आती होगी।
Mahant Avaidyanath: इस सबके बावजूद अपने यहां कहावत है ,”अंत भला तो सब भला”। इस सुंदर समापन में किसी अपने की अहम भूमिका को देख तो यह खुशी और बढ़ जाती होगी।
पीठ के योगदान के ही नाते प्राण प्रतिष्ठा को जन्म और जीवन का सबसे अहम पल मानते हैं योगी
Mahant Avaidyanath: राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की केंद्रीय भूमिका के ही मद्देनजर हाल में एक साक्षात्कार में पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्राण प्रतिष्ठा को अपने जन्म और जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल बताया। साथ ही राम मंदिर आंदोलन में पीठ की पीढ़ियों के योगदान की भी चर्चा की। साथ ही राम जन्मभूमि मुक्ति समिति के उपाध्यक्ष और अयोध्या स्थित दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष रहे सवर्गीय अशोक सिंघल के योगदान की चर्चा करते हैं। इन दोनों का गोरक्षपीठ और बड़े महराज से बहुत निकट का रिश्ता था।