Kedarnath: केदारनाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. महाभारत में भी इसका जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि इस पर मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। एक किंवदंती के मुताबित महाभारत युद्ध के बाद पांडवो अपने भाईयों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव के पास केदार घाटी गए थे। भगवान शिव उनसे खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए, पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए।
कहा जाता है कि 8वीं शताब्दी ईस्वी में हिन्दू गुरू आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का पुननिर्माण किया था। शंकराचार्य ने उस स्थान का पुनर्निर्माण किया जहां माना जाता है कि महाभारत के पांडवों ने एक शिव मंदिर का निर्माण किया था।
केदारनाथ मंदिर का शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है, यह हिन्दू धर्म के चारधाम और पंच केदार में गिना जाता है।
मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव अपने भाईयों की हत्या से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे। परंतु भगवान उनसे कर्म से खुश नहीं थे, इसलिए वे केदारनाथ चले गए, पांडव भी उनके दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच गए।
Kedarnath: केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ का प्रतिकुल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है।
पत्थरों से बना कत्यूरी शैली से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा। मंदिर के आसपास के मकानें बह गई। इस इतिहासिक मंदिर का मुख्य हिस्सा एवं सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे, लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आसपास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया। केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली है!!
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया था इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक। आज का विज्ञान बताता है कि केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।
केदारनाथ की भूमि 21वीं सदी में भी बहुत प्रतिकुल है। एक तरफ 22,000 फीट ऊंची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पांच नदियां है मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदरी। इनमें से कुछ इस पुराण में लिखे गए हैं।
Kedarnath: यह क्षेत्र मंदाकिनी नदी का एकमात्र जलसंग्रह क्षेत्र है। यह मंदिर कलाकृति है। कितना बड़ा असम्भव कार्य रहा होगा ऐसी जगह पर कलाकृति जैसा मंदिर बनाना जहां ठड के दिन भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप गाड़ी से उस स्थान तक नहीं जा सकते। फिर इस मंदिर को ऐसी जगह क्यों बनाया गया ?
1200 साल बाद, भी जहां उस क्षेत्र में सब कुछ हेलीकॉप्टर से ले जाया जाता है। JCB के बिना आज भी वहां एक भी ढ़ाचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर वहीं खड़ा है और न सिर्फ खड़ा है, बल्कि बहुत मजबूत है। हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए। वैज्ञानिक अनुमान लगाते है कि यदि मंदिर 10वीं शताब्दी में पृथ्वी पर होता, तो यह हिम युग की एक छोटी सी अवधि में होता।
Kedarnath: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परिक्षण किया। यह पत्थरों की जीवन की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी से बर्फ में दब गया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में कोई नुकसान नहीं हुआ। 2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस दौरान औसत से 573% अधिक बारिश हुई थी।
आगामी बाढ़ में 5748 लोग (सरकारी आंकड़े) मारे गये और 4200 गांवों को नुकसान पहुचा। भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया। सब कुछ ले जाया गया। लेकिन इतनी भीषण बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर का पूरा ढ़ाचे के ऑडिट में 99 फिसदी मंदिर पूरी तरह सुरक्षित है। 2013 की बाढ़ और इसकी वर्तमान स्थिति के दौरान निर्माण को कितना नुकसान हुआ था, इसका अध्यन करने के लिए आईआईटी मद्रास ने मंदिर पर एनडीटी परीक्षण किया। साथ ही कहा कि मंदिर पूरी तरह सुरक्षित और मजबूत है।
महिमा व इतिहास
केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ- ये दो प्रधान तीर्थ है, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12-13वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तूति के अनुसार उनका बनवाया हुआ है। जो 1076-99 काल के थे। एक मान्यता अनुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ीयों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है।
Kedarnath: केदारनाथ जी के जमलोकी ब्राह्मण और तीर्थ पुरोहित पंडा इस क्षेत्र के प्राचीन पुजारी हैं, जमलोकी ब्राह्मण केदारनाथ जी के यज्ञ पुरोहित भी हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी के समय से यहां पर दक्षिण भारत से जंगम समुदाय के रावल शिवलिंग का तथा वहा के स्थानीय जमलोकी ब्राह्मण पुजारी मंदिर में लक्ष्मीनारायण की पूजा करते हैं जबकि यात्रियों की ओर से पूजा तीर्थ पुरोहित पंडो द्वारा की जाती है। मंदिर के सामने पुरोहितों की अपने यजमानों एवं अन्य यात्रियों के लिए पक्की धर्मशालाएं है, जबकि मंदिर के पुजारी एवं अन्य कर्मचारीयों के भवन मंदिर के दक्षिण का ओर है।
केदारनाथ यात्रा
केदारनाथ धाम की यात्रा उत्तराखण्ड की पवित्र छोटा 5 धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मंदिरों में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है। केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मंदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री हैं। केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए वर्ष मंदिर खुलने की तिथि तय की जाती है।
मंदिर के खुलने की तिथि हिन्दु पंचांग की गणना के बाद ऊखी केद की उदघाटन तिथि अक्षय तृतीय के शुभ दिन और महाशिवरात्री पर हर साल घोषित की जाती है। और केदारनाथ मंदिर की समापन तिथि हर वर्ष नवंबर के आसपास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है। इसके बाद मंदिर के द्वार शीत काल के लिए बंद कर दिए जाते है।
पूजा के क्रम
Kedarnath: भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्रीभैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। मन्दिर समिति द्वारा केदारनाथ मंदिर में पूजा कराने हेतु जनता से जो दक्षिणा (शुल्क) लिया जाता है, उसमें समिति समय-समय पर परिर्वतन करती है।
केदारनाथ से बद्रीनाथ कैसे जाते हैं?
Kedarnath: केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी लगभग 245 किलोमाटर है। 245 किलोमीटर की दूरी में केदारनाथ से गौरीकुंड का 18 किलोमीटर का पैदल ट्रेक भी शामिल है। गौरीकुंड से 5 किलोमीटर की दूरी पर सोनप्रयाग जगह है जहाँ सभी वाहनों की पार्किंग होती है। सोनप्रयाग (केदारनाथ) से बद्रीनाथ जाने के दो सड़क मार्ग हैं। बद्रीनाथ जाने के लिए केदारनाथ के पास फाटा, गुप्तकाशी या सिरसी हेलीपैड से हेलीकॉप्टर भी बुक किया जा सकता है।