नर्मदा न्यूज़ नेशनल डेस्क। अगर आप ग्राहक हैं और लुभावने विज्ञापन के झांसे या बाजार के प्रपंच में आकर धोखाधड़ी के शिकार हो गए हैं तो उपभोक्ता संरक्षण का हथियार आपके लिए ब्रह्मास्त्र की तरह है, किंतु शर्त है कि इसके लिए आपको स्वयं ही सतर्क रहना पड़ेगा। पहल खुद ही करनी होगी। उत्पादों की शुद्धता मापने के विभिन्न पैमाने हैं। यदि पैकेट पर आईएसआई, एगमार्क या हालमार्क के निशान नहीं हैं तो उत्पाद की गुणवत्ता पर भरोसा करना ठीक नहीं।
नए कानून में जेल और जुर्माने का प्रावधान
अगर झूठे विज्ञापन, घटिया उत्पाद, कम मात्रा एवं अपर्याप्त सेवाओं के जरिए ग्राहकों के साथ छल होता है तो उचित प्लेटफॉर्म पर शिकायत करनी चाहिए। जिला एवं राज्य आयोगों के अतिरिक्त उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के हेल्पलाइन नंबर, ई-जागृति एवं ई-दाखिला प्लेटफार्म से समाधान मिल सकता है। नए अधिनियम में ग्राहकों के नुकसान के अनुसार जेल या जुर्माना का प्रविधान है। इसमें साइबर क्राइम के मामले नहीं लिए जाते हैं।
सामान वापस लेने से मना नहीं कर सकता दुकानदार
पहले सिर्फ बाजार में अनुचित कारोबार होता था और अब कई कंपनियां ऑनलाइन बिक्री करने लगी हैं। हर दिन करोड़ों रुपये के घटिया उत्पाद बिकते हैं। इसलिए ग्राहकों को अपने अधिकार के बारे में पता होना चाहिए। खरीदे गए सामान में खामियां निकल आती हैं तो संबंधित दुकानदार वापस लेने या रिप्लेस करने से इन्कार नहीं कर सकता। ऐसा करने पर दुकानदार को उपभोक्ता आयोग में घसीटा जा सकता है।
ग्राहक के पास छह मौलिक अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 छह मौलिक अधिकार देता है, जिनमें सुरक्षा, सूचना, उत्पादों के चयन, शिकायत पर सुनवाई एवं समस्या का समाधान मांगने के साथ जागरूकता का अधिकार भी हैं। ग्राहकों को उत्पाद की मात्रा, शुद्धता, मानक, मूल्य एवं गुणवत्ता की सूचना लेने का अधिकार है। उपभोक्ता मामले विभाग की सचिव निधि खरे का कहना है कि कई मामलों में त्वरित समाधान मिलने से उपभोक्ता निवारण तंत्र पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है।
पक्का बिल होना जरूरी
नए कानून में अपने हिसाब से उत्पादों के चयन, धोखाधड़ी पर उसका निवारण और शिकायत सही होने पर मुआवजा पाने का प्रविधान है। प्रमाण के लिए किसी भी खरीदारी का पक्का बिल जरूरी होगा। समाधान देने की प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है। शिकायत उसी आयोग में दर्ज किया जा सकता है, जिस क्षेत्र में ग्राहक या दूसरा पक्ष रहता है। शिकायत पत्र देने के तीन हफ्ते के भीतर स्वीकार्यता तय करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर मामला अपने आप सूचीबद्ध हो जाएगा।
समाधान के तीन प्लेटफार्म
उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए तीन स्तर की अदालतें हैं। जिला, राज्य एवं केंद्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग बनाए गए हैं। इनमें ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरह से शिकायत दी जा सकती है। ऑफलाइन की स्थिति में पहले जिला में शिकायत करनी होगी। वहां से समाधान नहीं मिलने पर 30 दिनों के भीतर राज्य आयोग में अपील की जा सकती है। वहां से भी संतुष्टि नहीं मिली तो महीने भर के भीतर राष्ट्रीय आयोग में अपील की जा सकती है।
टोल फ्री नंबर पर करें कॉल
शिकायत पत्र पर दोनों पक्षों के नाम और पते लिखा होने चाहिए। त्वरित समाधान के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) के टोल-फ्री नंबर 1915 के जरिए 17 भाषाओं में शिकायत की जा सकती है। जिला-राज्य स्तरीय आयोगों में ई-दाखिल के माध्यम से ऑनलाइन समाधान मांगा जा सकता है। राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के आयोगों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की भी सुविधा है।