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गोठान योजना बदहाल: भूख और बीमारी से 10 मवेशियों की मौत…

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सीजी डेस्क। छत्तीसगढ़ की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी गोठान योजना अब बदहाल स्थिति में पहुंच चुकी है। इस योजना के तहत 10,000 स्थानों पर गौठान बनाए गए थे, जिनका उद्देश्य मवेशियों की देखभाल और संवर्धन करना था। परंतु वर्तमान हालात बताते हैं कि ये गोठान अब मवेशियों के लिए कब्रगाह बन गए हैं।

दुर्ग जिले के गोठानों में गंभीर स्थिति
दुर्ग जिले के भिलाई स्थित सुपेला के कोसानाला और राजनांदगांव बायपास के पास स्थित गोठानों में हालात बेहद चिंताजनक हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इन गोठानों में भूख और प्यास के कारण 10 मवेशियों की मौत हो चुकी है। कई अन्य मवेशियों की हालत भी गंभीर बनी हुई है। चारे और पानी की व्यवस्था न होने से मवेशी बीमार पड़ रहे हैं।

स्थानीय लोगों का प्रशासन पर आरोप
स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन और गोठान समितियों को सूचना दी थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। स्थानीय निवासी आरोप लगाते हैं कि गोठान अब केवल नाम मात्र के लिए रह गए हैं। यह योजना तब तक सक्रिय रही जब तक इससे कमाई हो रही थी, लेकिन अब इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।

पूर्व समिति और नए प्रबंधक का दावा
कोसानाला गोठान समिति की पूर्व अध्यक्ष रेखा बघेल ने कहा कि उनकी जिम्मेदारी अब समाप्त हो चुकी है क्योंकि नए ठेकेदार ने काम संभाल लिया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि गायों की मौत झिल्ली (प्लास्टिक) खाने की वजह से हुई है।

वहीं, नए प्रबंधक सोमू साहू का कहना है कि उन्होंने सिर्फ तीन दिन पहले ही गोठान का प्रबंधन संभाला है और जल्द ही स्थिति में सुधार किया जाएगा। गायों की मौत की असली वजह चिकित्सकीय जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेगी।

गोठानों में सुविधाओं का अभाव
कांग्रेस सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट रहे इन गोठानों में अब न तो चारे की व्यवस्था है और न ही पानी की। आवारा मवेशियों को इन गोठानों में रखने के बावजूद उनके भोजन और स्वास्थ्य की अनदेखी हो रही है।

सरकारी उपेक्षा का परिणाम
गोठान योजना, जो कभी ग्रामीण विकास और मवेशियों के संवर्धन का प्रतीक मानी जाती थी, अब प्रशासनिक लापरवाही और उपेक्षा का शिकार हो चुकी है। इस घटना ने न केवल गोठान समितियों बल्कि जिला प्रशासन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

आगे की कार्रवाई
नए प्रबंधक के दावों के बावजूद स्थानीय लोगों और पशुप्रेमियों ने तत्काल सुधार की मांग की है। देखना यह है कि प्रशासन और समितियां इस योजना को पुनर्जीवित कर पाएंगी या नहीं।

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