नर्मदा न्यूज़ सिटी डेस्क। बॉलीवुड में अशोक कुमार को ऐसे सदाबहार अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है,जिन्होंने अपने बेमिसाल अभिनय से करीब छह दशक तक दर्शको के दिलों पर राज किया। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री मे दादा मुनि के नाम से मशहूर कुमुद कुमार गांगुली उर्फ अशोक कुमार का जन्म बिहार के भागलपुर शहर में 13 अक्तूबर 1911 को एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश के खंडवा शहर से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद यूनिर्वसिटी से पूरी की जहां उनकी दोस्ती शशाधर मुखर्जी से हो गयी जो उन्हीं के साथ पढ़ा करते थे।
इसके बाद अपनी दोस्ती को रिश्ते मे बदलते हुए अशोक कुमार ने अपनी इकलौती बहन की शादी शशाधर से कर दी। वर्ष 1934 में न्यू थियेटर मे बतौर लैबेरोटिरी असिटेंट काम कर रहे अशोक कुमार को बॉम्बे टॉकीज में काम कर रहे उनके बहनोई शशाधार मुखर्जी ने अपने पास बुला लिया।
वर्ष 1936 मे बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जीवन नैया’ के निर्माण के दौरान फिल्म के मुख्य अभिनेता बीमार पड़ गए। इस विकट परिस्थति मे बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय का ध्यान अशोक कुमार पर गया और उन्होंने अशोक कुमार से फिल्म में बतौर अभिनेता काम करने की गुजारिश की। इसके साथ हीं ‘जीवन नैया’ से अशोक कुमार का बतौर अभिनेता फिल्मी सपर शुरू हो गया।
वर्ष 1939 में प्रदर्शित फिल्म ‘कंगन’, ‘बंधन’ और ‘झूला’ में अशोक कुमार ने लीला चिटनिश के साथ काम किया। इन फिल्मों में उनके अभिनय को दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया इसके साथ हीं फिल्मों की कामयाबी के बाद अशोक कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री मे स्थापित हो गए।
वर्ष 1943 हिमांशु राय की मौत के बाद अशोक कुमार बॉम्बे टॉकीज को छोड़ फिल्मीस्तान स्टूडियों चले गए। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में बॉन्बे टॉकीज की वर्ष 1943 में निर्मित फिल्म ‘किस्मत’ में अशोक कुमार ने एंट्री हीरो की भूमिका निभायी थी।
इस फिल्म ने कलकत्ता के चित्रा थियेटर सिनेमा हॉल में लगातार 196 सप्ताह तक चलने का रिकॉर्ड बनाया। वर्ष1947 में देविका रानी के बॉम्बे टॉकीज छोड़ देने के बाद बतौर प्रोडक्शन चीफ बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले उन्होंने ‘मशाल’, ‘जिद्वी’ और ‘मजबूर’ जैसी कई फिल्मों का निर्माण किया।
पचास के दशक मे बॉम्बे टॉकीज से अलग होने के बाद अशोक कुमार ने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की इसके साथ हीं उन्होंने जूपिटर थियेटर भी खरीदा। अशोक कुमार प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने सबसे पहले समाज का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गयी।
इसके बाद उन्होनें अपने बैनर तले फिल्म ‘परिणीता’ का भी निर्माण किया। लगभग तीन साल के बाद फिल्म निर्माण क्षेत्र मे घाटा होने के कारण उन्होंने अशोक कुमार प्रोडक्शन कंपनी बंद कर दी।
वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म ‘परिणीता’ के निर्माण के दौरान फिल्म के निर्देशक बिमल राय के साथ उनकी अनबन बन हो गयी। इसके बाद अशोक कुमार ने बिमल राय के साथ काम करना बंद कर दिया। लेकिन अभिनेत्री नूतन के कहने पर अशोक कुमार ने एक बार फिर बिमल राय के साथ साल 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘बंदिनी’ मे काम किया और यह फिल्म हिन्दी फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्मों मे शुमार की जाती है।
अभिनय में एकरपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिए अशोक कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। साल 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ में उनके अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। हास्य से भरपूर इस फिल्म में अशोक कुमार के अभिनय को देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ‘आर्शीवाद’ में अपने बेमिसाल अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए। इस फिल्म में उनका गाया गाना ‘रेल गाड़ी रेल गाड़ी’ बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद साल 1967 में प्रदर्शित फिल्म ‘ज्वैलथीफ’ में उनके अभिनय का नया रूप दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म मे वह अपने सिने करियर मे पहली खलनायक की भूमिका में दिखाई दिए। इस फिल्म के जरिये भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
वर्ष 1984 मे दूरदर्शन के इतिहास के पहले सोप ऑपेरा ‘हमलोग’ में वह सीरियल के सूत्रधार की भूमिका में दिखाई दिए और छोटे पर्दे पर भी उन्होंने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। दूरदर्शन के लिए ही अशोक कुमार ने भीमभवानी, बहादुर शाह जफर और उजाले की ओर जैसे सीरियल मे भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया।
अशोक कुमार को मिले सम्मान की चर्चा की जाये तो वह दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं। वर्ष 1988 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से भी अशोक कुमार सम्मानित किए गए। लगभग छह दशक तक अपने बेमिसाल अभिनय से दर्शको के दिल पर राज करने वाले अशोक कुमार 10 दिसंबर 2001 को अलविदा कह गए।